अजब नहीं कि ख़ुदा तक तिरी रसाई हो
तिरी निगह से है पोशीदा आदमी का मक़ाम
तिरी नमाज़ में बाक़ी जलाल है न जमाल
तिरी अज़ाँ में नहीं है मिरी सहर का पयाम
Jaun Eliya
Mir Taqi Mir
Anwar Masood
Parveen Shakir
Allama Iqbal
Javed Akhtar
Gulzar
Wasi Shah
Rahat Indori
Faiz Ahmad Faiz
Mohsin Naqvi
Habib Jalib
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(3935) Peoples Rate This
रम्ज़-ओ-ईमा इस ज़माने के लिए मौज़ूँ नहीं
सबक़ मिला है ये मेराज-ए-मुस्तफ़ा से मुझे
मस्जिद-ए-क़ुर्तुबा
जवानों को मिरी आह-ए-सहर दे
इश्क़ से पैदा नवा-ए-ज़िंदगी में ज़ेर-ओ-बम
रोज़-ए-हिसाब जब मिरा पेश हो दफ़्तर-ए-अमल
मीर-ए-सिपाह ना-सज़ा लश्करियाँ शिकस्ता सफ़
साक़ी-नामा
हकीम ओ आरिफ़ ओ सूफ़ी तमाम मस्त-ए-ज़ुहूर
हिमाला
यूँ हाथ नहीं आता वो गौहर-ए-यक-दाना
जलाल-ए-पादशाही हो कि जमहूरी तमाशा हो