तिरा जौहर है नूरी पाक है तू
फ़रोग़-ए-दीदा-ए-अफ़्लाक है तू
तिरे सैद-ए-ज़बूँ फ़रिश्ता ओ हूर
कि शाहीन-ए-शह-ए-लौलाक है तू
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भरी बज़्म में राज़ की बात कह दी
अरब के सोज़ में साज़-ए-अजम है
अंदाज़-ए-बयाँ गरचे बहुत शोख़ नहीं है
जिन्हें मैं ढूँढता था आसमानों में ज़मीनों में
हकीम ओ आरिफ़ ओ सूफ़ी तमाम मस्त-ए-ज़ुहूर
सितारा क्या मिरी तक़दीर की ख़बर देगा
पास था नाकामी-ए-सय्याद का ऐ हम-सफ़ीर
ख़ुदी हो इल्म से मोहकम तो ग़ैरत-ए-जिब्रील
उक़ाबी रूह जब बेदार होती है जवानों में
नशा पिला के गिराना तो सब को आता है
दिल-ए-बेदार फ़ारूक़ी दिल-ए-बेदार कर्रारी
हम को तो मयस्सर नहीं मिट्टी का दिया भी