जिन्हें मैं ढूँढता था आसमानों में ज़मीनों में
वो निकले मेरे ज़ुल्मत-ख़ाना-ए-दिल के मकीनों में
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गला तो घोंट दिया अहल-ए-मदरसा ने तिरा
सख़्तियाँ करता हूँ दिल पर ग़ैर से ग़ाफ़िल हूँ मैं
ये है ख़ुलासा-ए-इल्म-ए-क़लंदरी कि हयात
न तू ज़मीं के लिए है न आसमाँ के लिए
तमन्ना दर्द-ए-दिल की हो तो कर ख़िदमत फ़क़ीरों की
गुज़र जा अक़्ल से आगे कि ये नूर
असर करे न करे सुन तो ले मिरी फ़रियाद
इबलीस की मजलिस-ए-शूरा
निगह बुलंद सुख़न दिल-नवाज़ जाँ पुर-सोज़
दिगर-गूँ है जहाँ तारों की गर्दिश तेज़ है साक़ी
शुआ-ए-उम्मीद
हाँ दिखा दे ऐ तसव्वुर फिर वो सुब्ह ओ शाम तू