गला तो घोंट दिया अहल-ए-मदरसा ने तिरा
कहाँ से आए सदा ला इलाह इल-लल्लाह
Mohsin Naqvi
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Faiz Ahmad Faiz
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तू अभी रहगुज़र में है क़ैद-ए-मक़ाम से गुज़र
कोई देखे तो मेरी नय-नवाज़ी
एजाज़ है किसी का या गर्दिश-ए-ज़माना
मेरी नवा-ए-शौक़ से शोर हरीम-ए-ज़ात में
मस्जिद-ए-क़ुर्तुबा
नानक
न मोमिन है न मोमिन की अमीरी
जवानों को मिरी आह-ए-सहर दे
मता-ए-बे-बहा है दर्द-ओ-सोज़-ए-आरज़ूमंदी
गुज़र जा अक़्ल से आगे कि ये नूर
फ़ितरत को ख़िरद के रू-ब-रू कर
साक़ी-नामा