तुझे किताब से मुमकिन नहीं फ़राग़ कि तू
किताब-ख़्वाँ है मगर साहिब-ए-किताब नहीं
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मिर्ज़ा 'ग़ालिब'
सौ सौ उमीदें बंधती है इक इक निगाह पर
हिन्दुस्तानी बच्चों का क़ौमी गीत
उमीद-ए-हूर ने सब कुछ सिखा रक्खा है वाइज़ को
हादसा वो जो अभी पर्दा-ए-अफ़्लाक में है
ख़िरद के पास ख़बर के सिवा कुछ और नहीं
रह-ओ-रस्म-ए-हरम ना-मोहरिमानग
कोई देखे तो मेरी नय-नवाज़ी
ख़िर्द-मंदों से क्या पूछूँ कि मेरी इब्तिदा क्या है
माँ का ख़्वाब
सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्ताँ हमारा
तुलू-ए-इस्लाम