रह-ओ-रस्म-ए-हरम ना-मुहरिमाना
कलीसा की अदा सौदागराना
तबर्रुक से मिरा पैराहन-ए-चाक
नहीं अहल-ए-जुनूँ का ये ज़माना
Parveen Shakir
Wasi Shah
Mohsin Naqvi
Javed Akhtar
Allama Iqbal
Faiz Ahmad Faiz
Mir Taqi Mir
Ahmad Faraz
Gulzar
Jaun Eliya
Rahat Indori
Anwar Masood
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खो न जा इस सहर ओ शाम में ऐ साहिब-ए-होश
अपनी जौलाँ-गाह ज़ेर-ए-आसमाँ समझा था मैं
सितारा क्या मिरी तक़दीर की ख़बर देगा
जवानों को मिरी आह-ए-सहर दे
ताज़ा फिर दानिश-ए-हाज़िर ने किया सेहर-ए-क़ादिम
अबुल-अला-म'अर्री
पुराने हैं ये सितारे फ़लक भी फ़र्सूदा
मुझे आह-ओ-फ़ुग़ान-ए-नीम-शब का फिर पयाम आया
था जहाँ मदरसा-ए-शीरी-ओ-शाहंशाही
सर-गुज़िश्त-ए-आदम
वही मेरी कम-नसीबी वही तेरी बे-नियाज़ी
तिरे इश्क़ की इंतिहा चाहता हूँ