दूर Poetry (page 40)

शत्तुल-अरब

इलियास बाबर आवान

ले चले हो तो कहीं दूर ही ले जाना मुझे

इकराम आज़म

ज़ुहूर-ए-पैकरी सहरा में है सिर्फ़ इक निशाँ मेरा

इज्तिबा रिज़वी

किस किस को बताऊँ कि मैं बुज़दिल नहीं 'राग़िब'

इफ़्तिख़ार राग़िब

चाहतों का सिलसिला है मुस्तक़िल

इफ़्तिख़ार राग़िब

अंदाज़-ए-सितम उन का निहायत ही अलग है

इफ़्तिख़ार राग़िब

दूर दूर तक सन्नाटा है कोई नहीं है पास

इफ़्तिख़ार क़ैसर

तेरी आँखों की चमक बस और इक पल है अभी

इफ़्तिख़ार नसीम

हाथ लहराता रहा वो बैठ कर खिड़की के साथ

इफ़्तिख़ार नसीम

तिरे क़रीब रहूँ या कि दूर जाऊँ मैं

इफ़्तिख़ार इमाम सिद्दीक़ी

समुंदर के किनारे एक बस्ती रो रही है

इफ़्तिख़ार आरिफ़

अजीब ही था मिरे दौर-ए-गुमरही का रफ़ीक़

इफ़्तिख़ार आरिफ़

अबू-तालिब के बेटे

इफ़्तिख़ार आरिफ़

अज़ाब ये भी किसी और पर नहीं आया

इफ़्तिख़ार आरिफ़

ज़ेहन ओ दिल के फ़ासले थे हम जिन्हें सहते रहे

इफ़्फ़त ज़र्रीं

वो बहुत दूर है मगर मिरे पास

इदरीस बाबर

इस से फूलों वाले भी आजिज़ आ गए हैं

इदरीस बाबर

दोस्त कुछ और भी हैं तेरे अलावा मिरे दोस्त

इदरीस बाबर

दिल के घुटने को इशारा समझो

इदरीस बाबर

देख न इस तरह गुज़ार अर्सा-ए-चश्म से मुझे

इदरीस बाबर

हवादिसात ज़रूरी हैं ज़िंदगी के लिए

इबरत मछलीशहरी

गुलशन में ले के चल किसी सहरा में ले के चल

इब्राहीम अश्क

दुनिया लुटी तो दूर से तकता ही रह गया

इब्राहीम अश्क

ग़लत-फ़हमी की सरहद पार कर के

इब्न-ए-मुफ़्ती

सब माया है

इब्न-ए-इंशा

फिर शाम हुई

इब्न-ए-इंशा

क्या धोका देने आओगी

इब्न-ए-इंशा

इस बस्ती के इक कूचे में

इब्न-ए-इंशा

एक बार कहो तुम मेरी हो

इब्न-ए-इंशा

दिल-आशोब

इब्न-ए-इंशा

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