समुंदर के किनारे एक बस्ती रो रही है
मैं इतनी दूर हूँ और मुझ को वहशत हो रही है
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दिल उन के साथ मगर तेग़ और शख़्स के साथ
घर से निकले हुए बेटों का मुक़द्दर मालूम
सितारों से भरा ये आसमाँ कैसा लगेगा
सुब्ह सवेरे रन पड़ना है और घमसान का रन
सब चेहरों पर एक ही रंग और सब आँखों में एक ही ख़्वाब
दिल कभी ख़्वाब के पीछे कभी दुनिया की तरफ़
बैलन्स-शीट
खज़ाना-ए-ज़र-ओ-गौहर पे ख़ाक डाल के रख
यक़ीन से यादों के बारे में कुछ कहा नहीं जा सकता
कोई तो फूल खिलाए दुआ के लहजे में
कूच
हम अहल-ए-जब्र के नाम-ओ-नसब से वाक़िफ़ हैं