दूर Poetry (page 38)

कितनी दूर से चलते चलते ख़्वाब-नगर तक आई हूँ

इरम ज़ेहरा

मिरे घर से ज़ियादा दूर सहरा भी नहीं लेकिन

इक़बाल साजिद

मैं तिरे दर का भिकारी तू मिरे दर का फ़क़ीर

इक़बाल साजिद

वो चाँद है तो अक्स भी पानी में आएगा

इक़बाल साजिद

संग-दिल हूँ इस क़दर आँखें भिगो सकता नहीं

इक़बाल साजिद

रुख़-ए-रौशन का रौशन एक पहलू भी नहीं निकला

इक़बाल साजिद

पता कैसे चले दुनिया को क़स्र-ए-दिल के जलने का

इक़बाल साजिद

वो निगाहों को जब बदलते हैं

इक़बाल सफ़ी पूरी

नगर में रहते थे लेकिन घरों से दूर रहे

इक़बाल मिनहास

शहपारा-ए-अदब हो अगर वारदात-ए-दिल

इक़बाल माहिर

नज़र नज़र में तमन्ना क़दम क़दम पे गुरेज़

इक़बाल माहिर

पर ले के किधर जाएँ कुछ दूर तक उड़ आएँ

इक़बाल कौसर

'इक़बाल' यूँही कब तक हम क़ैद-ए-अना काटें

इक़बाल कौसर

ख़िज़ाँ का दौर भी आता है एक दिन 'कैफ़ी'

इक़बाल कैफ़ी

लब-ए-गुदाज़ पे अल्फ़ाज़-ए-सख़्त रहते हैं

इक़बाल कैफ़ी

आँखों को इंतिशार है दिल बे-क़रार है

इक़बाल हुसैन रिज़वी इक़बाल

हम बहुत दूर निकल आए हैं चलते चलते

इक़बाल अज़ीम

ज़ब्त भी चाहिए ज़र्फ़ भी चाहिए और मोहतात पास-ए-वफ़ा चाहिए

इक़बाल अज़ीम

तुम ग़ैरों से हँस हँस के मुलाक़ात करो हो

इक़बाल अज़ीम

हम बहुत दूर निकल आए हैं चलते चलते

इक़बाल अज़ीम

अपने मरकज़ से अगर दूर निकल जाओगे

इक़बाल अज़ीम

सब तमन्नाओं से ख़्वाबों से निकल आए हैं

इक़बाल अशहर कुरेशी

सुनो समुंदर की शोख़ लहरो हवाएँ ठहरी हैं तुम भी ठहरो

इक़बाल अशहर

ले गईं दूर बहुत दूर हवाएँ जिस को

इक़बाल अशहर

सिलसिला ख़त्म हुआ जलने जलाने वाला

इक़बाल अशहर

दयार-ए-दिल में नया नया सा चराग़ कोई जला रहा है

इक़बाल अशहर

हद्द-ए-निगाह शाम का मंज़र धुआँ धुआँ

इक़बाल अंजुम

शोर से बच कर सहमा सहमा बैठा है चुप-चाप

इंतिख़ाब सय्यद

घड़ी में अक्स-ए-इंसाँ

इंतिख़ाब अालम

ये नहीं बर्क़ इक फ़रंगी है

इंशा अल्लाह ख़ान

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