दर्द Poetry (page 8)

रात क़ातिल की गली हो जैसे

वजद चुगताई

ना-मुरादी ही लिखी थी सो वो पूरी हो गई

वजद चुगताई

फ़ज़ा में दाएरे बिखरे हुए हैं

वजद चुगताई

दुनिया अपनी मंज़िल पहुँची तुम घर में बेज़ार पड़े

वजद चुगताई

दोनों ने किया है मुझ को रुस्वा

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

यही है इश्क़ की मुश्किल तो मुश्किल आसाँ है

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

वफ़ा-ए-दोस्ताँ कैसी जफ़ा-ए-दुश्मनाँ कैसी

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

तीर-ए-नज़र ने ज़ुल्म को एहसाँ बना दिया

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

संग-ए-तिफ़्लाँ फ़िदा-ए-सर न हुआ

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

मुरव्वत का पास और वफ़ा का लिहाज़

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

लूटा है मुझे उस की हर अदा ने

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

आह-ए-शब नाला-ए-सहर ले कर

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

हुजूम-ए-ग़म से मिली है हयात-ए-नौ मुझ को

वाहिद प्रेमी

ग़ैर-मुमकिन है कि मिट जाए सनम की सूरत

वाहिद प्रेमी

रौशन हों दिल के दाग़ तो लब पर फ़ुग़ाँ कहाँ

वहीदा नसीम

हर एक गाम पे सज्दा यहाँ रवा होगा

वहीदा नसीम

हम आज राह-ए-तमन्ना में जी को हार आए

वहीद क़ुरैशी

कोई न चाहने वाला था हुस्न-ए-रुस्वा का

वहीद क़ुरैशी

परोमीथियस

वहीद अख़्तर

पत्थरों का मुग़न्नी

वहीद अख़्तर

खंडर आसेब और फूल

वहीद अख़्तर

आग अपने ही दामन की ज़रा पहले बुझा लो

वहीद अख़्तर

तन्हाई मुझे देखती है

वहीद अहमद

ख़ुद-रौ दलीलें

वहीद अहमद

अब तो सोच लिया है यारो दिल का ख़ूँ हो जाने दूँ

विश्वनाथ दर्द

अब हम चराग़ बन के सर-ए-राह जल उठे

विश्वनाथ दर्द

लम्हा लम्हा शोर सा बरपा हुआ अच्छा लगा

विशाल खुल्लर

आग दरिया को इशारों से लगाने वाला

विशाल खुल्लर

उस हिज्र पे तोहमत कि जिसे वस्ल की ज़िद हो

विपुल कुमार

दिलों पे दर्द का इम्कान भी ज़ियादा नहीं

विपुल कुमार

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