दर्द Poetry (page 9)

दिलों पे दर्द का इम्कान भी ज़ियादा नहीं

विपुल कुमार

नम आँखों में क्या कर लेगा ग़ुस्सा देखेंगे

विजय शर्मा अर्श

अब कहाँ दर्द जिस्म-ओ-जान में है

विजय शर्मा अर्श

हम कभी ख़ुद से कोई बात नहीं कर पाते

उषा भदोरिया

एक दो अश्क बहाती है चली जाती है

उरूज ज़ेहरा ज़ैदी

अश्क पर गुदाज़-दिल हाशिया चढ़ाता है

उरूज ज़ैदी बदायूनी

ऐ दिल-ए-ख़ुद-ना-शनास ऐसा भी क्या

उम्मीद फ़ाज़ली

हर इक का दर्द उसी आशुफ़्ता-सर में तन्हा था

उमर अंसारी

इश्क़ में हर तमन्ना-ए-क़ल्ब-ए-हज़ीं सुर्ख़ आँसू बहाए तो मैं क्या करूँ

तुर्फ़ा क़ुरैशी

पुरानी चोट मैं कैसे दिखाऊँ

त्रिपुरारि

है ये पुर-दर्द दास्ताँ 'महरूम'

तिलोकचंद महरूम

क्या सुनाएँ किसी को हाल अपना

तिलोकचंद महरूम

हिज्राँ की शब जो दर्द के मारे उदास हैं

तिलोकचंद महरूम

हर इक के दुख पे जो अहल-ए-क़लम तड़पता था

तिफ़्ल दारा

कौन से दुख को पल्ले बाँधें किस ग़म को तहरीर करें

तौसीफ़ तबस्सुम

वो अव्वलीं दर्द की गवाही सजी हुई बज़्म-ए-ख़्वाब जैसे

तौसीफ़ तबस्सुम

कितने ही तीर ख़म-ए-दस्त-ओ-कमाँ में होंगे

तौसीफ़ तबस्सुम

इस पार जहान-ए-रफ़्तगाँ है

तौसीफ़ तबस्सुम

गर्द-आलूद दरीदा चेहरा यूँ है माह ओ साल के ब'अद

तौसीफ़ तबस्सुम

बजा कि दरपय-ए-आज़ार चश्म-ए-तर है बहुत

तौसीफ़ तबस्सुम

आख़िर ख़ुद अपने ही लहू में डूब के सर्फ़-ए-विग़ा होगे

तौसीफ़ तबस्सुम

बदन में दिल था मुअल्लक़ ख़ला में नज़रें थीं

तौक़ीर तक़ी

ख़ाक होती हुई हस्ती से उठा

तौक़ीर तक़ी

कहीं शुऊर में सदियों का ख़ौफ़ ज़िंदा था

तौक़ीर तक़ी

बहार दर्द भरा इक़्तिबास छोड़ गई

तौक़ीर अब्बास

वो रौशनी जो शफ़क़ का लिबास छोड़ गई

तौक़ीर अब्बास

मिरी सच्चाई हर सूरत तिरी मुट्ठी से निकलेगी

ताैफ़ीक़ साग़र

राज़ का बज़्म में चर्चा कभी होने न दिया

तसनीम आबिदी

बे-तलब कर के ज़रूरत भी चली जाए अगर

तसनीम आबिदी

ऐ मेरे दिल तू बता तुझ को गवारा क्या है

तरकश प्रदीप

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