कौन से दुख को पल्ले बाँधें किस ग़म को तहरीर करें
याँ तो दर्द सिवा होता है और भी अर्ज़-ए-हाल के ब'अद
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बजा कि दरपय-ए-आज़ार चश्म-ए-तर है बहुत
तुम अच्छे थे तुम को रुस्वा हम ने किया
जो भी नरमी है ख़यालों में न होने से है
इक तीर नहीं क्या तिरी मिज़्गाँ की सफ़ों में
मेरी सूरत साया-ए-दीवार-ओ-दर में कौन है
दिल की बाज़ी हार के रोए हो तो ये भी सुन रक्खो
पाँव में लिपटी हुई है सब के ज़ंजीर-ए-अना
दिल था पहलू में तो कहते थे तमन्ना क्या है
दुख झेलो तो जी कड़ा ही रखना
था पस-ए-मिज़्गान-तर इक हश्र बरपा और भी
वाहिमा होगा यहाँ कोई न आया होगा