नदी Poetry (page 27)

तुझ से इक हाथ क्या मिला लिया है

इमरान आमी

परिंदा आइने से क्या लड़ेगा

इमरान आमी

जितने पानी में कोई डूब के मर सकता है

इमरान आमी

एहतियातन उसे छुआ नहीं है

इमरान आमी

बात दिल को मिरे लगी नहीं है

इमरान आमी

आख़िर इक दिन सब को मरना होता है

इमरान आमी

क़द्र-दाँ कोई न असफ़ल है न आ'ला अपना

इमदाद अली बहर

महबूब-ए-ख़ुदा ने तुझे नायाब बनाया

इमदाद अली बहर

जज़्ब-ए-उल्फ़त ने दिखाया असर अपना उल्टा

इमदाद अली बहर

जल्वा-ए-अर्बाब-ए-दुनिया देखिए

इमदाद अली बहर

जब कि सर पर वबाल आता है

इमदाद अली बहर

इस तरह ज़ीस्त बसर की कोई पुरसाँ न हुआ

इमदाद अली बहर

हम आज-कल हैं नामा-नवीसी की ताव पर

इमदाद अली बहर

आतिश-ए-बाग़ ऐसी भड़की है कि जलती है हवा

इमदाद अली बहर

आतिश-ए-बाग़ ऐसे भड़की है कि जलती है हवा

इमदाद अली बहर

वक़्त वक़्त की बात है या दस्तूर है दुनिया का साईं

इलियास इश्क़ी

गरचे क़लम से कुछ न लिखेंगे मुँह से कुछ नहीं बोलेंगे

इलियास इश्क़ी

शत्तुल-अरब

इलियास बाबर आवान

थोड़ी चाँदी थोड़ा गारा लगता है

इलियास बाबर आवान

सारे दरिया फूट पड़ेंगे इक दूजे के बीच

इफ़्तिख़ार क़ैसर

मिरी आँखों को आँखों का किनारा कौन देगा

इफ़्तिख़ार क़ैसर

दूर दूर तक सन्नाटा है कोई नहीं है पास

इफ़्तिख़ार क़ैसर

अंदलीबों से कभी गुल से कभी लेता हूँ

इफ़्तिख़ार हुसैन रिज़वी सईद

पुराने दुश्मन

इफ़्तिख़ार आरिफ़

ये बस्ती जानी-पहचानी बहुत है

इफ़्तिख़ार आरिफ़

उमीद-ओ-बीम के मेहवर से हट के देखते हैं

इफ़्तिख़ार आरिफ़

शिकस्ता-पर जुनूँ को आज़माएँगे नहीं क्या

इफ़्तिख़ार आरिफ़

मेरा मालिक जब तौफ़ीक़ अर्ज़ानी करता है

इफ़्तिख़ार आरिफ़

मंज़र से हैं न दीदा-ए-बीना के दम से हैं

इफ़्तिख़ार आरिफ़

ज़ेहन ओ दिल के फ़ासले थे हम जिन्हें सहते रहे

इफ़्फ़त ज़र्रीं

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