दीद Poetry (page 5)

फिर रह-ए-इश्क़ वही ज़ाद-ए-सफ़र माँगे है

साग़र निज़ामी

हम आँखों से भी अर्ज़-ए-तमन्ना नहीं करते

साग़र निज़ामी

क्यूँ दिल तिरे ख़याल का हामिल नहीं रहा

साग़र ख़य्यामी

तालिब-ए-दीद पे आँच आए ये मंज़ूर नहीं

सफ़ी लखनवी

अज़मत-ए-फ़िक्र के अंदाज़ अयाँ भी होंगे

सादिक़ नसीम

आहिस्ता बोलिएगा तमाशा खड़ा न हो

साबिर

सितम-ए-ना-रवा को रोते हैं

रियाज़ ख़ैराबादी

वही तवील सी राहें सफ़र वही तन्हा

ऋषि पटियालवी

सदमे गुज़रे ईज़ा गुज़री

रिन्द लखनवी

मोहब्बत में वफ़ा वालों को कब ईज़ा सताती है

रिफ़अत सेठी

ख़ुद-निगर थे और महव-ए-दीद-ए-हुस्न-ए-यार थे

रज़ी मुजतबा

वो तमाम रंग अना के थे वो उमंग सारी लहू से थी

राज़ी अख्तर शौक़

मैं जब भी क़त्ल हो कर देखता हूँ

राज़ी अख्तर शौक़

यक़ीं से फूटती है या गुमाँ से आती है

राशिद तराज़

टूट जाए तो कहीं उस को भी चैन आता है

रशीदा सलीम सीमीं

वो रह-ओ-रस्म न वो रब्त-ए-निहाँ बाक़ी है

राम कृष्ण मुज़्तर

मुस्तक़िल दीद की ये शक्ल नज़र आई है

राम कृष्ण मुज़्तर

दिए जला के हवाओं के मुँह पे मार आया

रख़शां हाशमी

नख़्ल-ए-उमीद-ओ-आरज़ू बे-बर्ग-ओ-बार है

राज कुमार सूरी नदीम

वस्ल की रुत हो कि फ़ुर्क़त की फ़ज़ा मुझ से है

राहुल झा

बे-नाम सी ख़लिश कि जो दिल में जिगर में है

राही शहाबी

तश्बीब

राही मासूम रज़ा

एक नज़्म सुब्ह के इंतिज़ार में

राही मासूम रज़ा

हर इक फ़न में यक़ीनन ताक़ है वो

राही फ़िदाई

चश्म-ए-ख़ाना मक़ाम-ए-दर्द का है

इक़बाल ख़ुसरो क़ादरी

तिरी पहली दीद के साथ ही वो फ़ुसूँ भी था

इक़बाल कौसर

कभी आइने सा भी सोचना मुझे आ गया

इक़बाल कौसर

गाहे गाहे जो इधर आप करम करते हैं

इंशा अल्लाह ख़ान

हज़ार ख़्वाब लिए जी रही हैं सब आँखें

इन्दिरा वर्मा

उखड़ी न एक शाख़ भी नख़्ल-ए-जदीद की

इनाम दुर्रानी

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