दीद Poetry (page 7)

चलो वापस चलें

हामिद यज़दानी

सहरा में हर तरफ़ है वही शोर-ए-अल-अतश

हामिद हुसैन हामिद

हर्फ़-ए-ग़ज़ल से रंग-ए-तमन्ना भी छीन ले

हमीद अलमास

जब से तू ने मुझे दीवाना बना रक्खा है

हकीम नासिर

हुस्न भी है पनाह में इश्क़ भी है पनाह में

हैरत गोंडवी

तुर्रा उसे जो हुस्न-ए-दिल-आज़ार ने किया

हैदर अली आतिश

यूँ उठा दे हमारे जी से ग़रज़

हफ़ीज़ जौनपुरी

आने वाले जाने वाले हर ज़माने के लिए

हफ़ीज़ जालंधरी

तू न हो हम-नफ़स अगर जीने का लुत्फ़ ही नहीं

हादी मछलीशहरी

ख़िज़ाँ-नसीब की हसरत ब-रू-ए-कार न हो

हबीब अहमद सिद्दीक़ी

दुनिया को रू-शनास-ए-हक़ीक़त न कर सके

हबीब अहमद सिद्दीक़ी

इस तरह दर्द का तुम अपने मुदावा करना

हबीब आरवी

किसी की याद का चेहरा

गुलनाज़ कौसर

बा'द-ए-मकीं मकाँ का गर बाम रहा तो क्या हुआ

ग़ुलाम यहया हुज़ूर अज़ीमाबादी

आँखों का ख़ुदा ही है ये आँसू की है गर मौज

ग़ुलाम यहया हुज़ूर अज़ीमाबादी

तोड़ कर शीशा-ए-दिल को मिरे बर्बाद न कर

गुहर खैराबादी

हवा के हाथ में ख़ंजर है और सब चुप हैं

गोविन्द गुलशन

मातम-ए-दीद है दीदार का ख़्वाहाँ होना

ग़ुलाम मौला क़लक़

मता-ए-दीद तो क्या जानिए किस से इबारत है

ग़ुलाम हुसैन साजिद

अभी शब है मय-ए-उल्फ़त उण्डेलें

ग़ुलाम हुसैन साजिद

महव-ए-दीद-ए-चमन-ए-शौक़ है फिर दीदा-ए-शौक़

ग़ुलाम भीक नैरंग

कहते हैं ईद है आज अपनी भी ईद होती

ग़ुलाम भीक नैरंग

फिर वही हम हैं ख़याल-ए-रुख़-ए-ज़ेबा है वही

ग़ुलाम भीक नैरंग

कट गई बे-मुद्दआ सारी की सारी ज़िंदगी

ग़ुलाम भीक नैरंग

कहते हैं ईद है आज अपनी भी ईद होती

ग़ुलाम भीक नैरंग

अपनी नज़र में भी तो वो अपना नहीं रहा

ग़ज़नफ़र

तपिश से मेरी वक़्फ़-ए-कशमकश हर तार-ए-बिस्तर है

ग़ालिब

सद जल्वा रू-ब-रू है जो मिज़्गाँ उठाइए

ग़ालिब

पए-नज़्र-ए-करम तोहफ़ा है शर्म-ए-ना-रसाई का

ग़ालिब

नफ़स न अंजुमन-ए-आरज़ू से बाहर खींच

ग़ालिब

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