दीद Poetry (page 8)

मत मर्दुमक-ए-दीदा में समझो ये निगाहें

ग़ालिब

हरीफ़-ए-मतलब-ए-मुश्किल नहीं फ़ुसून-ए-नियाज़

ग़ालिब

ग़ाफ़िल ब-वहम-ए-नाज़ ख़ुद-आरा है वर्ना याँ

ग़ालिब

एक एक क़तरे का मुझे देना पड़ा हिसाब

ग़ालिब

बहुत सही ग़म-ए-गीती शराब कम क्या है

ग़ालिब

इंतिज़ार-ए-दीद में यूँ आँख पथराई कि बस

ग़व्वास क़ुरैशी

जुदाई

फ़िराक़ गोरखपुरी

रात भी नींद भी कहानी भी

फ़िराक़ गोरखपुरी

निगाह-ए-नाज़ ने पर्दे उठाए हैं क्या क्या

फ़िराक़ गोरखपुरी

नर्म फ़ज़ा की करवटें दिल को दुखा के रह गईं

फ़िराक़ गोरखपुरी

मय-कदे में आज इक दुनिया को इज़्न-ए-आम था

फ़िराक़ गोरखपुरी

जिसे लोग कहते हैं तीरगी वही शब हिजाब-ए-सहर भी है

फ़िराक़ गोरखपुरी

ये दौर कैसा है या-इलाही कि दोस्त दुश्मन से कम नहीं है

फ़ाज़िल अंसारी

अदीब था न मैं कोई बड़ा सहाफ़ी था

फ़ाज़िल अंसारी

मुझे मंज़ूर काग़ज़ पर नहीं पत्थर पे लिख देना

फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी

दयार-ए-फ़िक्र-ओ-हुनर को निखारने वाला

फ़र्रुख़ ज़ोहरा गिलानी

बीते लम्हे कशीद करती हूँ

फ़र्रुख़ ज़ोहरा गिलानी

दिल-ए-ईज़ा-तलब ले तेरा कहना कर लिया मैं ने

फ़ारूक़ बाँसपारी

मैं शहरी हूँ मगर मेरी बयाबानी नहीं जाती

फ़रहत एहसास

कुर्सी-ए-दिल पे तिरे जाते ही दर्द आ बैठे

फ़रहत एहसास

सवाल-ए-दीद पे तेवरी चढ़ाई जाती है

फ़ानी बदायुनी

या रब मिरी हयात से ग़म का असर न जाए

फ़ना निज़ामी कानपुरी

जो मिटा है तेरे जमाल पर वो हर एक ग़म से गुज़र गया

फ़ना बुलंदशहरी

जब तक मिरे होंटों पे तिरा नाम रहेगा

फ़ना बुलंदशहरी

ऐ सनम तुझ को हम भुला न सके

फ़ना बुलंदशहरी

सुरुद-ए-शबाना

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

मरसिए

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

कोई आशिक़ किसी महबूबा से!

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

इंतिज़ार

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

एक रह-गुज़र पर

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

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