दीद Poetry (page 9)

ब'अद-अज़-वक़्त

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

अगस्त1955

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

ये जफ़ा-ए-ग़म का चारा वो नजात-ए-दिल का आलम

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

शरह-ए-बेदर्दी-ए-हालात न होने पाई

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

किए आरज़ू से पैमाँ जो मआल तक न पहुँचे

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

कब तक दिल की ख़ैर मनाएँ कब तक रह दिखलाओगे

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

हिम्मत-ए-इल्तिजा नहीं बाक़ी

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

हसरत-ए-दीद में गुज़राँ हैं ज़माने कब से

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

आज यूँ मौज-दर-मौज ग़म थम गया इस तरह ग़म-ज़दों को क़रार आ गया

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

थम गई वक़्त की रफ़्तार तिरे कूचे में

एजाज़ गुल

इस्तादा है जब सामने दीवार कहूँ क्या

एजाज़ गुल

तेरा क्या जाता जो मिलता जाम-ए-रेहानी मुझे

धनपत राय थापर राज़

जब वो मह-ए-रुख़्सार यकायक नज़र आया

दाऊद औरंगाबादी

हुस्न-ए-अज़ल का जल्वा हमारी नज़र में है

दत्तात्रिया कैफ़ी

'दर्द' के मिलने से ऐ यार बुरा क्यूँ माना

ख़्वाजा मीर 'दर्द'

क़त्ल-ए-आशिक़ किसी माशूक़ से कुछ दूर न था

ख़्वाजा मीर 'दर्द'

मिरा जी है जब तक तिरी जुस्तुजू है

ख़्वाजा मीर 'दर्द'

इश्क़ हर-चंद मिरी जान सदा खाता है

ख़्वाजा मीर 'दर्द'

सब लोग जिधर वो हैं उधर देख रहे हैं

दाग़ देहलवी

सोज़-ए-फ़िराक़ दिल में छुपाए हुए हैं हम

बबल्स होरा सबा

ज़मीं नई थी अनासिर की ख़ू बदलती थी

बिलाल अहमद

बुत-ए-काफ़िर जो तू मुझ से ख़फ़ा है

भारतेंदु हरिश्चंद्र

अक़्ल दौड़ाई बहुत कुछ तो गुमाँ तक पहुँचे

बेताब अज़ीमाबादी

लड़ाएँ आँख वो तिरछी नज़र का वार रहने दें

बेख़ुद देहलवी

हासिल उस मह-लक़ा की दीद नहीं

बेखुद बदायुनी

हासिल उस मह-लक़ा की दीद नहीं

बेखुद बदायुनी

रहने दे रतजगों में परेशाँ मज़ीद उसे

बेदिल हैदरी

बरहमन मुझ को बनाना न मुसलमाँ करना

बेदम शाह वारसी

अल्लाह-रे फ़ैज़ एक जहाँ मुस्तफ़ीद है

बेदम शाह वारसी

शौक़ को बे-अदब किया इश्क़ को हौसला दिया

बासित भोपाली

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