दीवार Poetry (page 56)

पछता रहे हैं दर्द के रिश्तों को तोड़ कर

आफ़ताब आरिफ़

उम्र-ए-रफ़्ता मैं तिरे हाथ भी क्या आया हूँ

आफ़ताब अहमद

शब को पाज़ेब की झंकार सी आ जाती है

अफ़सर माहपुरी

जो चुप-चाप रहती थी दीवार पर

आदिल मंसूरी

आवाज़ की दीवार भी चुप-चाप खड़ी थी

आदिल मंसूरी

वक़्त की रेत पे

आदिल मंसूरी

सितारा सो गया है

आदिल मंसूरी

लहू को सुर्ख़ गुलाबों में बंद रहने दो

आदिल मंसूरी

वो बरसात की शब वो पिछ्ला पहर

आदिल मंसूरी

सोए हुए पलंग के साए जगा गया

आदिल मंसूरी

जो चीज़ थी कमरे में वो बे-रब्त पड़ी थी

आदिल मंसूरी

बदन पर नई फ़स्ल आने लगी

आदिल मंसूरी

रख़्त-ए-सफ़र यूँही तो न बेकार ले चलो

अदीम हाशमी

मेरे रस्ते में भी अश्जार उगाया कीजे

अदीम हाशमी

किसी झूटी वफ़ा से दिल को बहलाना नहीं आता

अदीम हाशमी

हम बहर-ए-हाल दिल ओ जाँ से तुम्हारे होते

अदीम हाशमी

इक खिलौना टूट जाएगा नया मिल जाएगा

अदीम हाशमी

दर्द होते हैं कई दिल में छुपाने के लिए

अदीम हाशमी

बस कोई ऐसी कमी सारे सफ़र में रह गई

अदीम हाशमी

आया हूँ संग ओ ख़िश्त के अम्बार देख कर

अदीम हाशमी

ये ज़मीनी भी है ज़मानी भी

अदील ज़ैदी

किस की ख़ल्वत से निखर कर सुब्ह-दम आती है धूप

अदीब ख़लवत

तौफ़ीक़ से कब कोई सरोकार चले है

अदा जाफ़री

कहते हैं कि अब हम से ख़ता-कार बहुत हैं

अदा जाफ़री

अचानक दिलरुबा मौसम का दिल-आज़ार हो जाना

अदा जाफ़री

गया तो हुस्न न दीवार में न दर में था

अबुल मुजाहिद ज़ाहिद

ये तो नहीं कि बादिया-पैमा न आएगा

अबु मोहम्मद सहर

फूलों की तलब में थोड़ा सा आज़ार नहीं तो कुछ भी नहीं

अबु मोहम्मद सहर

ख़ुशनुमा दीवार-ओ-दर के ख़्वाब ही देखा किए

अबरार आज़मी

धूप चमकी रात की तस्वीर पीली हो गई

अबरार आज़मी

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