दहलीज Poetry (page 6)

जब सुब्ह की दहलीज़ पे बाज़ार लगेगा

अकबर हैदराबादी

ये बरसों का तअल्लुक़ तोड़ देना चाहते हैं हम

ऐतबार साजिद

घर की दहलीज़ से बाज़ार में मत आ जाना

ऐतबार साजिद

हवेली मौत की दहलीज़ पर

ऐन ताबिश

पाताल ज़मीन आसमान

अहमद ज़फ़र

तुम पे सूरज की किरन आए तो शक करता हूँ

अहमद कमाल परवाज़ी

नित-नए रंग से करता रहा दिल को पामाल

अहमद हमदानी

मुंतज़िर किस का हूँ टूटी हुई दहलीज़ पे मैं

अहमद फ़राज़

तसलसुल

अहमद फ़राज़

ख़्वाबों के ब्योपारी

अहमद फ़राज़

बन-बास

अहमद फ़राज़

दोस्त बन कर भी नहीं साथ निभाने वाला

अहमद फ़राज़

आँख से दूर न हो दिल से उतर जाएगा

अहमद फ़राज़

कर्ब के शहर से निकले तो ये मंज़र देखा

अफ़ज़ल मिनहास

ये हक़ीक़त है वो कमज़ोर हुआ करती हैं

अफ़ज़ल इलाहाबादी

सितारा सो गया है

आदिल मंसूरी

हश्र की सुब्ह दरख़्शाँ हो मक़ाम-ए-महमूद

आदिल मंसूरी

ख़ौफ़-ओ-वहशत बर-सर-ए-बाज़ार रख जाता है कौन

अब्दुस्समद ’तपिश’

शेर कहने की तबीअत न रही

अब्दुल सलाम

खुली जब आँख तो देखा कि दुनिया सर पे रक्खी है

अब्दुल अहद साज़

इतना आसाँ नहीं मसनद पे बिठाया गया मैं

अब्बास ताबिश

सिलसिले सब रुक गए दिल हाथ से जाता रहा

आज़िम कोहली

दिल की दहलीज़ सूनी सूनी है

आसी रामनगरी

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