दहलीज Poetry (page 3)

जब रात के सीने में उतरना है तो यारो

रशीद क़ैसरानी

गए दिनों की मुसाफ़िरत का ब-यक-क़लम इश्तिहार लिखना

रशीद एजाज़

रात हम ने जहाँ बसर की है

रसा चुग़ताई

इश्क़ से बच के किधर जाएँगे हम

रंगीन सआदत यार ख़ाँ

है वही मंज़र-ए-ख़ूँ-रंग जहाँ तक देखूँ

रख़शां हाशमी

मामूल

राजेन्द्र मनचंदा बानी

सद-सौग़ात सकूँ फ़िरदौस सितंबर आ

राजेन्द्र मनचंदा बानी

चाँद की अव्वल किरन मंज़र-ब-मंज़र आएगी

राजेन्द्र मनचंदा बानी

शाम कठिन है रात कड़ी है

राजेन्द्र नाथ रहबर

मुज़ाहिमतों के अहद-निगार

इक़बाल कौसर

स्कैप-इज़्म

इलियास बाबर आवान

गुमनाम सिपाही की क़ब्र पर

इफ़्तिख़ार आरिफ़

बर्क़ ने जब भी आँख खोली है

इब्न-ए-मुफ़्ती

हादिसा इश्क़ में दरपेश हुआ चाहता है

हाशिम रज़ा जलालपुरी

तल्ख़ियाँ रह जाएँगी लफ़्ज-ए-वफ़ा रह जाएगा

हसन निज़ामी

इश्क़ को पास-ए-वफ़ा आज भी करते देखा

हसन नज्मी सिकन्दरपुरी

बीते हुए लम्हों के जो गिरवीदा रहे हैं

हसन नज्मी सिकन्दरपुरी

शब की दहलीज़ से किस हाथ ने फेंका पत्थर

हसन अख्तर जलील

दिल की दहलीज़ पे जब शाम का साया उतरा

हसन आबिदी

कौन देखे मेरी शाख़ों के समर टूटे हुए

हसन आबिदी

दिल की दहलीज़ पे जब शाम का साया उतरा

हसन आबिदी

सोच का धारा

हसन आबिद

रख दिया है मिरी दहलीज़ पे पत्थर किस ने

हमीद अलमास

वापसी

हबीब तनवीर

नाम क्या लूँ

हबीब जालिब

एक ज़ाती नज़्म

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

फिर वो दरिया है किनारों से छलकने वाला

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

फिर वही कहने लगे तू मिरे घर आया था

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

इक ख़लिश है मिरे बाहर मिरी दम-साज़ गिरी

ग़ुफ़रान अमजद

सुलगना अंदर अंदर मिस्रा-ए-तर सोचते रहना

फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी

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