दहलीज Poetry (page 2)
क्या जानिए मंज़िल है कहाँ जाते हैं किस सम्त
शकेब जलाली
कारोबार-ए-शौक़ में बस फ़ाएदा इतना हुआ
शहरयार
सूरज तिरी दहलीज़ में अटका हुआ निकला
शहनवाज़ ज़ैदी
कोई तारा न दिखा शाम की वीरानी में
शाहिदा हसन
पहले तो मिट्टी का और पानी का अंदाज़ा हुआ
शाहीन अब्बास
इस्तिआरे ढूँडता रहता हूँ
सरमद सहबाई
हमारे लिए सुब्ह के होंट पर बद-दुआ' है
सरमद सहबाई
अजनबी
साक़ी फ़ारुक़ी
आज रक्खे हैं क़दम उस ने मिरी चौखट पर
सलीम सिद्दीक़ी
हूँ पारसा तिरे पहलू में शब गुज़ार के भी
सलीम सिद्दीक़ी
इक दरीचे की तमन्ना मुझे दूभर हुई है
सलीम सिद्दीक़ी
रास्ता चाहिए दरिया की फ़रावानी को
सलीम शाहिद
ख़्वाहिश को अपने दर्द के अंदर समेट ले
सलीम शाहिद
चराग़-ए-याद की लौ हम-सफ़र कहाँ तक है
सलीम कौसर
बस लौट आना
सलीम फ़िगार
दीद के बदले सदा दीदा-ए-तर रक्खा है
सलीम फ़िगार
दीद के बदले सदा दीदा-ए-तर रक्खा है
सलीम फ़िगार
मियाँ वो जान कतराने लगी है
साजिद प्रेमी
इस से पहले कि किसी घाट उतारे जाते
सफ़दर सलीम सियाल
रेत
सईदुद्दीन
क्या से क्या हो गई इस दौर में हालत घर की
रहबर जौनपूरी
महकती आँखों में सोचा था ख़्वाब उतरेंगे
रज़ा मौरान्वी
गर्म हर लम्हा लहू जिस्म के अंदर रखना
रासिख़ इरफ़ानी
दोस्त के शहर में जब मैं पहुँचा शहर का मंज़र अच्छा था
रासिख़ फारानी
अपने बीमार सितारे का मुदावा होती
राशिद तराज़
साया
राशिद आज़र
यूँ भी इक बज़्म-ए-सदा हम ने सजाई पहरों
रशीद क़ैसरानी
सदियों से मैं इस आँख की पुतली में छुपा था
रशीद क़ैसरानी
सदियों से मैं इस आँख की पुतली में छुपा था
रशीद क़ैसरानी
पानी की तरह रेत के सीने में उतर जा
रशीद क़ैसरानी
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