दहलीज Poetry (page 5)

सोचते और जागते साँसों का इक दरिया हूँ मैं

अतहर नफ़ीस

सौ रंग है किस रंग से तस्वीर बनाऊँ

अतहर नफ़ीस

दिल की दहलीज़ पे दिलबर आया

अतीब एजाज़

आए हैं लोग रात की दहलीज़ फाँद कर

अताउल हक़ क़ासमी

थोड़ी सी उस तरफ़ भी नज़र होनी चाहिए

अताउल हक़ क़ासमी

थोड़ी सी इस तरफ़ भी नज़र होनी चाहिए

अताउल हक़ क़ासमी

चोब-ए-सहरा भी वहाँ रश्क-ए-समर कहलाए

अता शाद

चोब-ए-सहरा भी वहाँ रश्क-ए-समर कहलाए

अता शाद

बुझ गए मंज़र उफ़ुक़ पर हर निशाँ मद्धम हुआ

असलम महमूद

जो ख़्वाब की दहलीज़ तलक भी नहीं आया

अशफ़ाक़ हुसैन

फिर याद उसे करने की फ़ुर्सत निकल आई

अशफ़ाक़ हुसैन

दिल इक नई दुनिया-ए-मआनी से मिला है

अशफ़ाक़ हुसैन

कुछ भी कहो सब अपनी अनाओं पे अड़े हैं

असग़र आबिद

जो सुनता हूँ कहूँगा मैं जो कहता हूँ सुनूँगा मैं

अनवर शऊर

उतरी शाम तो बरसा पानी या अल्लाह

अनवर ख़ान

चाँद हम दोनों से मुशाबह है

अंजुम ख़लीक़

दस्तार-ए-हुनर बख़्शिश-ए-दरबार नहीं है

अंजुम ख़लीक़

अब इस सादा कहानी को नया इक मोड़ देना था

अंजुम इरफ़ानी

तीरगी ताक़ में जड़ी हुई है

अम्मार इक़बाल

पलकों की दहलीज़ पे चमका एक सितारा था

अमजद इस्लाम अमजद

जब भी आँखों में तिरे वस्ल का लम्हा चमका

अमजद इस्लाम अमजद

अपने घर की खिड़की से मैं आसमान को देखूँगा

अमजद इस्लाम अमजद

ख़ेमा-ए-जाँ को जो देखूँ तो शरर-बार लगे

आमिर नज़र

हम सितारों में तिरा अक्स ना ढलने देंगे

अम्बरीन सलाहुद्दीन

तेरे पहलू में जी रही थी कभी

अलमास शबी

मैं ग़ैर-महफ़ूज़ रात से डरता हूँ

अख़्तर हुसैन जाफ़री

इम्तिनाअ का महीना

अख़्तर हुसैन जाफ़री

क़र्या-ए-जाँ से गुज़र कर हम ने ये देखा भी है

अख़्तर होशियारपुरी

न जब कोई शरीक-ए-ज़ात होगा

अख़्तर होशियारपुरी

आवारगी

अख़लाक़ अहमद आहन

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