आए हैं लोग रात की दहलीज़ फाँद कर
उन के लिए नवेद-ए-सहर होनी चाहिए
Wasi Shah
Mir Taqi Mir
Anwar Masood
Javed Akhtar
Jaun Eliya
Allama Iqbal
Ahmad Faraz
Parveen Shakir
Mohsin Naqvi
Rahat Indori
Habib Jalib
Faiz Ahmad Faiz
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वो एक शख़्स कि मंज़िल भी रास्ता भी है
उसे अब भूल जाने का इरादा कर लिया है
मंज़िलें भी ये शिकस्ता-बाल-ओ पर भी देखना
दिलों से ख़ौफ़ निकलता नहीं अज़ाबों का
भटक रही है 'अता' ख़ल्क़-ए-बे-अमाँ फिर से
वो सुकून-ए-जिस्म-ओ-जाँ गिर्दाब-ए-जाँ होने को है
थोड़ी सी इस तरफ़ भी नज़र होनी चाहिए
वह एक शख़्स कि मंज़िल भी रास्ता भी है
एक फ़लर्ट लड़की
जिस की ख़ातिर मैं भुला बैठा था अपने आप को
थोड़ी सी उस तरफ़ भी नज़र होनी चाहिए