जिस की ख़ातिर मैं भुला बैठा था अपने आप को
अब उसी के भूल जाने का हुनर भी देखना
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मंज़िलें भी ये शिकस्ता-बाल-ओ पर भी देखना
आए हैं लोग रात की दहलीज़ फाँद कर
एक फ़लर्ट लड़की
भटक रही है 'अता' ख़ल्क़-ए-बे-अमाँ फिर से
वो एक शख़्स कि मंज़िल भी रास्ता भी है
उसे अब भूल जाने का इरादा कर लिया है
वो गर्द है कि वक़्त से ओझल तो मैं भी हूँ
गुम हुआ जाता है कोई मंज़िलों की गर्द में
वो दश्त-ए-कर्ब-ओ-बला में उतरने देता नहीं
दिलों से ख़ौफ़ निकलता नहीं अज़ाबों का
थोड़ी सी इस तरफ़ भी नज़र होनी चाहिए