देख Poetry (page 44)

मिरे क़रीब ही महताब देख सकता था

इदरीस बाबर

मैं उसे सोचता रहा या'नी

इदरीस बाबर

किसी के हाथ कहाँ ये ख़ज़ाना आता है

इदरीस बाबर

करते फिरते हैं ग़ज़ालाँ तिरा चर्चा साहब

इदरीस बाबर

इस से फूलों वाले भी आजिज़ आ गए हैं

इदरीस बाबर

तिरी ज़मीं से उठेंगे तो आसमाँ होंगे

इब्राहीम अश्क

करें सलाम उसे तो कोई जवाब न दे

इब्राहीम अश्क

बेकल बेकल रहते हो पर महफ़िल के आदाब के साथ

इब्न-ए-इंशा

सब माया है

इब्न-ए-इंशा

पिछले-पहर के सन्नाटे में

इब्न-ए-इंशा

फ़र्ज़ करो

इब्न-ए-इंशा

सुनते हैं फिर छुप छुप उन के घर में आते जाते हो

इब्न-ए-इंशा

पीत करना तो हम से निभाना सजन हम ने पहले ही दिन था कहा ना सजन

इब्न-ए-इंशा

जब दहर के ग़म से अमाँ न मिली हम लोगों ने इश्क़ ईजाद किया

इब्न-ए-इंशा

'इंशा'-जी उठो अब कूच करो इस शहर में जी को लगाना क्या

इब्न-ए-इंशा

हमें तुम पे गुमान-ए-वहशत था हम लोगों को रुस्वा किया तुम ने

इब्न-ए-इंशा

देख हमारे माथे पर ये दश्त-ए-तलब की धूल मियाँ

इब्न-ए-इंशा

और तो कोई बस न चलेगा हिज्र के दर्द के मारों का

इब्न-ए-इंशा

सब मुतमइन थे सुब्ह का अख़बार देख कर

हुसैन ताज रिज़वी

माहौल से जैसे कि घुटन होने लगी है

हुसैन ताज रिज़वी

तय किया इस तरह सफ़र तन्हा

हुरमतुल इकराम

ज़रा सी बात पर नाराज़ होना रंजिशें करना

हुमैरा रहमान

क़यामतें गुज़र गईं रिवायतों की सोच में

हुमैरा रहमान

वक़्त ऐसा कोई तुझ पर आए

हुमैरा राहत

दिल को ग़म रास है यूँ गुल को सबा हो जैसे

होश तिर्मिज़ी

मादर-ए-वतन का नौहा

हिमायत अली शाएर

रात सुनसान दश्त ओ दर ख़ामोश

हिमायत अली शाएर

दस्तक हवा ने दी है ज़रा ग़ौर से सुनो

हिमायत अली शाएर

शब-ए-फ़िराक़ कुछ ऐसा ख़याल-ए-यार रहा

हिज्र नाज़िम अली ख़ान

फिर अँधेरी राह में कोई दिया मिल जाएगा

हिदायतुल्लाह ख़ान शम्सी

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