देख Poetry (page 42)

ख़िज़ाँ का क़र्ज़ तो इक इक दरख़्त पर है यहाँ

इक़बाल अशहर कुरेशी

रास्ता भूल गया एक सितारा अपना

इक़बाल अशहर

प्यास के बेदार होने का कोई रस्ता न था

इक़बाल अशहर

ज़रा सी बात से मंज़र बदल भी सकता था

इक़बाल अंजुम

चंद मुद्दत को फिराक़-ए-सनम-ओ-दैर तो है

इंशा अल्लाह ख़ान

टुक आँख मिलाते ही किया काम हमारा

इंशा अल्लाह ख़ान

तर्क कर अपने नंग-ओ-नाम को हम

इंशा अल्लाह ख़ान

फबती तिरे मुखड़े पे मुझे हूर की सूझी

इंशा अल्लाह ख़ान

मियाँ चश्म-ए-जादू पे इतना घमंड

इंशा अल्लाह ख़ान

क्या मिला हम को तेरी यारी में

इंशा अल्लाह ख़ान

है मुझ को रब्त बस-कि ग़ज़ालान-ए-रम के साथ

इंशा अल्लाह ख़ान

अमरद हुए हैं तेरे ख़रीदार चार पाँच

इंशा अल्लाह ख़ान

चंद सतरें

इंजिला हमेश

सस्ती नज़्म

इंजील सहीफ़ा

ले-बाई एरिया

इंजील सहीफ़ा

मिटती क़द्रों में भी पाबंद-ए-वफ़ा हैं हम लोग

इंद्र मोहन मेहता कैफ़

वो अजीब शख़्स था भीड़ में जो नज़र में ऐसे उतर गया

इन्दिरा वर्मा

उस से मत कहना मिरी बे-सर-ओ-सामानी तक

इन्दिरा वर्मा

काश वो पहली मोहब्बत के ज़माने आते

इन्दिरा वर्मा

पड़ता था इस ख़याल का साया यहीं कहीं

इनाम नदीम

वो आते-जाते इधर देखता ज़रा सा है

इनाम कबीर

होते होंगे इस दुनिया में अर्श के दा'वेदार बुलंद

इनाम हनफ़ी

कौन है मेरा ख़रीदार नहीं देखता मैं

इनआम आज़मी

कभी तो चश्म-ए-फ़लक में हया दिखाई दे

इनआम आज़मी

जिस तरफ़ देखिए बाज़ार उदासी का है

इनआम आज़मी

यूँही अक्सर मुझे समझा बुझा कर लौट जाती है

इम्तियाज़ अहमद

वो तबस्सुम था जहाँ शायद वहीं पर रह गया

इम्तियाज़ अहमद

तेरी याद

इमरान शनावर

ये ग़लत है ये साल ठीक नहीं

इमरान शमशाद

ठहर के देख तू इस ख़ाक से क्या क्या निकल आया

इमरान शमशाद

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