देख Poetry (page 45)

रंग-आमेज़ी से पैदा कुछ असर ऐसा हुआ

हीरा लाल फ़लक देहलवी

कू-ए-जानाँ में अदा देखिए दीवानों की

हीरा लाल फ़लक देहलवी

इस तरह पैकर-ए-वफ़ा हो जाएँ

हज़ीं लुधियानवी

हो के अफ़्सुर्दा मिरी शूमी-ए-तक़दीर न देख

हज़ार लखनवी

दिल की धड़कन मिरे माथे की शिकन है कि नहीं

हज़ार लखनवी

देखने वाले ज़माने का भी हक़ है मुझ पर

हज़ार लखनवी

हमें उजाल दे फिर देख अपने जल्वों को

हयात वारसी

फ़सील-ए-शुक्र में हैं सब्र के हिसार में हैं

हयात वारसी

चेहरे को तेरे देख के ख़ामोश हो गया

हयात लखनवी

वहम-ओ-गुमाँ में भी कहाँ ये इंक़िलाब था

हयात लखनवी

ज़ुल्फ़ अंधेर करने वाली है

हातिम अली मेहर

न दिया बोसा-ए-लब खा के क़सम भूल गए

हातिम अली मेहर

मेरे ही दिल के सताने को ग़म आया सीधा

हातिम अली मेहर

करते हैं शौक़-ए-दीद में बातें हवा से हम

हातिम अली मेहर

चैन पहलू में उसे सुब्ह नहीं शाम नहीं

हातिम अली मेहर

अजब है 'मेहर' से उस शोख़ की विसाल का वक़्त

हातिम अली मेहर

आलम-ए-हैरत का देखो ये तमाशा एक और

हातिम अली मेहर

दरिया की तरफ़ देख लो इक बार मिरे यार

हस्सान अहमद आवान

वफ़ा तुझ से ऐ बेवफ़ा चाहता हूँ

हसरत मोहानी

कहाँ हम कहाँ वस्ल-ए-जानाँ की 'हसरत'

हसरत मोहानी

ऐ याद-ए-यार देख कि बा-वस्फ़-ए-रंज-ए-हिज्र

हसरत मोहानी

आईने में वो देख रहे थे बहार-ए-हुस्न

हसरत मोहानी

उस बुत के पुजारी हैं मुसलमान हज़ारों

हसरत मोहानी

जो वो नज़र बसर-ए-लुत्फ़ आम हो जाए

हसरत मोहानी

हमें वक़्फ़-ए-ग़म सर-ब-सर देख लेते

हसरत मोहानी

और भी हो गए बेगाना वो ग़फ़लत कर के

हसरत मोहानी

अपना सा शौक़ औरों में लाएँ कहाँ से हम

हसरत मोहानी

आप ने क़द्र कुछ न की दिल की

हसरत मोहानी

उस ज़ुल्फ़ से दिल हो कर आज़ाद बहुत रोया

हसरत अज़ीमाबादी

रखा पा जहाँ में नगारा ज़मीं पर

हसरत अज़ीमाबादी

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