वफ़ा तुझ से ऐ बेवफ़ा चाहता हूँ
मिरी सादगी देख क्या चाहता हूँ
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क्या काम उन्हें पुर्सिश-ए-अरबाब-ए-वफ़ा से
छेड़ नाहक़ न ऐ नसीम-ए-बहार
घटेगा तेरे कूचे में वक़ार आहिस्ता आहिस्ता
हुस्न-ए-बे-मेहर को परवा-ए-तमन्ना क्या हो
कहाँ हम कहाँ वस्ल-ए-जानाँ की 'हसरत'
चाहत मिरी चाहत ही नहीं आप के नज़दीक
मिलते हैं इस अदा से कि गोया ख़फ़ा नहीं
कट गई एहतियात-ए-इश्क़ में उम्र
रौशन जमाल-ए-यार से है अंजुमन तमाम
पैहम दिया प्याला-ए-मय बरमला दिया
ग़ैर की नज़रों से बच कर सब की मर्ज़ी के ख़िलाफ़
तासीर-ए-बर्क़-ए-हुस्न जो उन के सुख़न में थी