देख Poetry (page 6)

सब्र करना सख़्त मुश्किल है तड़पना सहल है

यगाना चंगेज़ी

इम्तियाज़-ए-सूरत-ओ-मअ'नी से बेगाना हुआ

यगाना चंगेज़ी

बुतों को देख के सब ने ख़ुदा को पहचाना

यगाना चंगेज़ी

वहशत थी हम थे साया-ए-दीवार-ए-यार था

यगाना चंगेज़ी

साया अगर नसीब हो दीवार-ए-यार का

यगाना चंगेज़ी

ख़ुदी का नश्शा चढ़ा आप में रहा न गया

यगाना चंगेज़ी

बैठा हूँ पाँव तोड़ के तदबीर देखना

यगाना चंगेज़ी

अगर अपनी चश्म-ए-नम पर मुझे इख़्तियार होता

यगाना चंगेज़ी

आप में क्यूँकर रहे कोई ये सामाँ देख कर

यगाना चंगेज़ी

कलेजा काँपता है देख कर इस सर्द-मेहरी को

वज़ीर अली सबा लखनवी

कोई सूरत से गर सफ़ा हो

वज़ीर अली सबा लखनवी

दिल है ग़िज़ा-ए-रंज जिगर है ग़िज़ा-ए-रंज

वज़ीर अली सबा लखनवी

देख कर ख़ुश-रंग उस गुल-पैरहन के हाथ पाँव

वज़ीर अली सबा लखनवी

बुत-परस्ती से न तीनत मिरी ज़िन्हार फिरी

वज़ीर अली सबा लखनवी

बच कर कहाँ मैं उन की नज़र से निकल गया

वज़ीर अली सबा लखनवी

ऐ सनम सब हैं तिरे हाथों से नालाँ आज-कल

वज़ीर अली सबा लखनवी

आया जो मौसम-ए-गुल तो ये हिसाब होगा

वज़ीर अली सबा लखनवी

सारी उम्र गँवा दी हम ने

वज़ीर आग़ा

मैं और तू

वज़ीर आग़ा

अंकबूत

वज़ीर आग़ा

अलमिया

वज़ीर आग़ा

आवेज़िश

वज़ीर आग़ा

उड़ी जो गर्द तो इस ख़ाक-दाँ को पहचाना

वज़ीर आग़ा

सितारा तो कभी का जल-बुझा है

वज़ीर आग़ा

इस गिर्या-ए-पैहम की अज़िय्यत से बचा दे

वज़ीर आग़ा

क़तरे गिरे जो कुछ अरक़-ए-इंफ़िआ'ल के

वसीम ख़ैराबादी

नज़्अ' में प्यार से क्यूँ पूछते हो तुम मुझ को

वसीम ख़ैराबादी

तुम मेरी तरफ़ देखना छोड़ो तो बताऊँ

वसीम बरेलवी

उसे समझने का कोई तो रास्ता निकले

वसीम बरेलवी

न जाने क्यूँ मुझे उस से ही ख़ौफ़ लगता है

वसीम बरेलवी

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