दीवाना Poetry (page 6)

काम इस दुनिया में आ कर हम ने क्या अच्छा किया

साहिर देहल्वी

जो ला-मज़हब हो उस को मिल्लत-ओ-मशरब से क्या मतलब

साहिर देहल्वी

हर रात का ख़्वाब

सहबा अख़्तर

हम दिल की निगाहों से जहाँ देख रहे हैं

सहर महमूद

मोहब्बत में वफ़ाओं का यही इनआ'म है 'सूफ़ी'

सग़ीर अहमद सूफ़ी

होली

साग़र निज़ामी

आँख तुम्हारी मस्त भी है और मस्ती का पैमाना भी

साग़र निज़ामी

इक अजनबी ख़याल में ख़ुद से जुदा रहा

साग़र मेहदी

पैमाना तिरे लब हैं आँखें तिरी मय-ख़ाना

सागर जलालाबादी

ज़ुल्फ़ तेरी हुई कमंद मुझे

सदरुद्दीन मोहम्मद फ़ाएज़

एक वसिय्यत

सादिक़

क्या पता क्या था उधर और क्या न था

साबिर अदीब

यगाना बन के हो जाए वो बेगाना तो क्या होगा

सबा अकबराबादी

जुनूँ में गुम हुए होश्यार हो कर

सबा अकबराबादी

जो हमारे सफ़र का क़िस्सा है

सबा अकबराबादी

ख़त-ए-शौक़ को पढ़ के क़ासिद से बोले

साइल देहलवी

ख़िज़ाँ का जो गुलशन से पड़ जाए पाला

साइल देहलवी

उस हुस्न का शैदा हूँ उस हुस्न का दीवाना

रियाज़ ख़ैराबादी

मय रहे मीना रहे गर्दिश में पैमाना रहे

रियाज़ ख़ैराबादी

जाने वाले न हम उस कूचे में आने वाले

रियाज़ ख़ैराबादी

आईना देखते ही वो दीवाना हो गया

रियाज़ ख़ैराबादी

तू आप को पोशीदा ओ इख़्फ़ा न समझना

रिन्द लखनवी

साइलाना उन के दर पर जब मिरा जाना हुआ

रिन्द लखनवी

क़ब्र पर होवें दो न चार दरख़्त

रिन्द लखनवी

दिल-लगी ग़ैरों से बे-जा है मिरी जाँ छोड़ दे

रिन्द लखनवी

छुप के घर ग़ैर के जाया न करो

रिन्द लखनवी

जब याद आया तेरा महकता बदन मुझे

रिफ़अत अल हुसैनी

ये वक़्त जब भी लहू का ख़िराज माँगता है

रज़ा मौरान्वी

हुस्न की फ़ितरत में दिल-आज़ारियाँ

रज़ा लखनवी

शम्अ' की आग़ोश ख़ाली कर के परवाना चला

रज़ा जौनपुरी

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