दीवाना Poetry (page 4)

दुनिया की रिवायात से बेगाना नहीं हूँ

शकील बदायुनी

आदाब-ए-आशिक़ी से बेगाना कह रही है

शकील बदायुनी

कहाँ है दिल जो कहूँ होवे आ के दीवाना

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

असीरों का नहीं कुछ शोर-ओ-ग़ुल ये आज ज़िंदाँ में

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

क्यूँकि दीवाना बेड़ियाँ तोड़े

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

हो रहा है अब्र और करता है वो जानाना रक़्स

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

हमारी सैर को गुलशन से कू-ए-यार बेहतर था

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

हमारी अक़्ल-ए-बे-तदबीर पर तदबीर हँसती है

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

गुल की और बुलबुल की सोहबत को चमन का शाना है

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

किस लिए वो शहर की दीवार से सर फोड़ता

शहज़ाद अहमद

बस यही होगा कि दीवाना कहेंगे अहल-ए-बज़्म

शहज़ाद अहमद

यादों की ज़ंजीरें

शहज़ाद अहमद

वो मिरे पास है क्या पास बुलाऊँ उस को

शहज़ाद अहमद

तुझ पे जाँ देने को तय्यार कोई तो होगा

शहज़ाद अहमद

हम लोगों को अपने दिल के राज़ बताते रहते हैं

शहज़ाद अहमद

ला-ज़वाल सुकूत

शहरयार

ग़म का ख़ज़ाना तेरा भी है मेरा भी

शाहिद कबीर

रात भी बाक़ी है सहबा भी शीशा भी पैमाना भी

शाहिद इश्क़ी

मोहब्बत मुझ से कहती थी ज़रा होश्यार दामन से

शाहिद भोपाली

किसी की ज़ुल्फ़-ए-शिकन-दर-शिकन की बात हुई

शाहिद अख़्तर

दिल जल्वा-गाह-ए-सूरत-ए-जानाना हो गया

शाह नसीर

क्या कहूँ तुम से मैं यारो कौन हूँ

शाह आसिम

इस दिल में अगर जल्वा-ए-दिल-दार न होता

शाह आसिम

उम्र भर डोलती यादों की ज़िया से खेले

शफ़क़त बटालवी

ज़िंदगी तुझ से हमें अब कोई शिकवा ही नहीं

शफ़ीक़ देहलवी

जैसे सुब्ह को सूरज निकले शाम ढले छुप जाए है

शफ़ीक़ देहलवी

गुल याद न अमवाज-ए-नसीम-ए-सहरी याद

शायर फतहपुरी

कहते हैं अहल-ए-होश जब अफ़्साना आप का

शाद अज़ीमाबादी

अभी तो मौसम-ए-ना-ख़ुश-गवार आएगा

शाद आरफ़ी

वो जो फ़िरदौस-ए-नज़र है आईना-ख़ाना अभी

सेहर इश्क़ाबादी

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