धूप Poetry (page 30)

जिस दिन शहर जला था उस दिन धूप में कितनी तेज़ी थी

अंजुम तराज़ी

लम्हा लम्हा अपनी ज़हरीली बातों से डसता था

अंजुम तराज़ी

पानी की आवाज़

अंजुम सलीमी

ख़ाक छानी न किसी दश्त में वहशत की है

अंजुम सलीमी

जब भी कोई बात की आँसू ढलके साथ

अंजुम रूमानी

तोड़ कड़ियाँ ज़मीर कि 'अंजुम'

अंजुम लुधियानवी

आज़ार मिरे दिल का दिल-आज़ार न हो जाए

अंजुम ख़याली

सदाक़तों को ये ज़िद है ज़बाँ तलाश करूँ

अंजुम ख़लीक़

कार-ए-हुनर सँवारने वालों में आएगा

अंजुम ख़लीक़

तेशा-ब-कफ़ को आइना-गर कह दिया गया

अंजुम इरफ़ानी

ज़हर लगता है ये आदत के मुताबिक़ मुझ को

अंजुम बाराबंकवी

वो जिस के नाम में लज़्ज़त बहुत है

अंजुम बाराबंकवी

ज़माने भर का जो फ़ित्ना रहा था

अनजुम अब्बासी

एक नज़्म

अनीस नागी

इसी ज़मीं पे इसी आसमाँ में रहना है

अनीस अशफ़ाक़

इस शहर के लोग अजीब से हैं अब सब ही तुम्हारे असीर हुए

अनीस अंसारी

चलो ये सच ही सही होगा ना-गहाँ गुज़रे

अनीस अहमद अनीस

दिल की दिल को ख़बर नहीं मिलती

आनंद नारायण मुल्ला

ख़ुद-सुपुर्दगी

अमजद इस्लाम अमजद

ग़ुबार-ए-दश्त-ए-तलब में हैं रफ़्तगाँ क्या क्या

अमजद इस्लाम अमजद

अगरचे कोई भी अंधा नहीं था

अमजद इस्लाम अमजद

ख़्वाब जो बिखर गए

आमिर उस्मानी

ख़ुद अपने साथ सफ़र में रहे तो अच्छा है

अमीर क़ज़लबाश

यूँ मिरे होने को मुझ पर आश्कार उस ने किया

अमीर इमाम

हर एक शाम का मंज़र धुआँ उगलने लगा

अमीर इमाम

रस्ता रोकती ख़ामोशी ने कौन सी बात सुनानी है

अम्बरीन सलाहुद्दीन

धनक

अम्बर बहराईची

क्यूँ न हों शाद कि हम राहगुज़र में हैं अभी

अम्बर बहराईची

हर लम्हा सैराबी की अर्ज़ानी है

अम्बर बहराईची

आज फिर धूप की शिद्दत ने बड़ा काम किया

अम्बर बहराईची

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