धूप Poetry (page 4)
सब्ज़े से सब दश्त भरे हैं ताल भरे हैं पानी से
ज़फ़र सहबाई
रखा है बज़्म में उस ने चराग़ कर के मुझे
ज़फ़र सहबाई
रखा है बज़्म में उस ने चराग़ कर के मुझे
ज़फ़र सहबाई
हरे पत्तो सुनहरी धूप की क़ुर्बत में ख़ुश रहना
ज़फ़र सहबाई
चिलचिलाती धूप ने ग़ुस्सा उतारा हर जगह
ज़फ़र सहबाई
नक़ाब उस ने रुख़-ए-हुस्न-ए-ज़र पे डाल दिया
ज़फ़र मुरादाबादी
घर से निकाले पाँव तो रस्ते सिमट गए
ज़फ़र कलीम
मोम के लोग कड़ी धूप में आ बैठे हैं
ज़फ़र इक़बाल ज़फ़र
पाई हमेशा रेत भँवर काटने के बा'द
ज़फ़र इक़बाल ज़फ़र
आइना देखें न हम अक्स ही अपना देखें
ज़फ़र इक़बाल ज़फ़र
ये हाल है तो बदन को बचाइए कब तक
ज़फ़र इक़बाल
इक धूप सी तनी हुई बादल के आर-पार
ज़फ़र इक़बाल
यकसू भी लग रहा हूँ बिखरने के बावजूद
ज़फ़र इक़बाल
फिर कोई शक्ल नज़र आने लगी पानी पर
ज़फ़र इक़बाल
कुछ उस ने सोचा तो था मगर काम कर दिया था
ज़फ़र इक़बाल
जिस्म के रेगज़ार में शाम-ओ-सहर सदा करूँ
ज़फ़र इक़बाल
हमें भी मतलब-ओ-मअ'नी की जुस्तुजू है बहुत
ज़फ़र इक़बाल
बिजली गिरी है कल किसी उजड़े मकान पर
ज़फ़र इक़बाल
बदला ये लिया हसरत-ए-इज़हार से हम ने
ज़फ़र इक़बाल
दर्द बहता है दरिया के सीने में पानी नहीं
ज़फर इमाम
पल पल जीने की ख़्वाहिश में कर्ब-ए-शाम-ओ-सहर माँगा
ज़फ़र गोरखपुरी
चेहरा लाला-रंग हुआ है मौसम-ए-रंज-ओ-मलाल के बाद
ज़फ़र गोरखपुरी
मोहब्बत की बुलंदी से कभी उतरा नहीं जाता
ज़फ़र अंसारी ज़फ़र
इन की नज़रों में न बन जाए तमाशा चेहरा
ज़फ़र अंसारी ज़फ़र
यारो हर ग़म ग़म-ए-याराँ है क़रीब आ जाओ
यूसुफ़ ज़फ़र
यारो हर ग़म ग़म-ए-याराँ है क़रीब आ जाओ
यूसुफ़ ज़फ़र
वाहिमा
यूसुफ़ तक़ी
ख़ुद-फ़रेबी
यूसुफ़ तक़ी
पटरियों की चमकती हुई धार पर फ़ासले अपनी गर्दन कटाते रहे
यूसुफ़ तक़ी
लम्हा लम्हा फैलती जाती है रात
यूसुफ़ तक़ी
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