दिन Poetry (page 54)

ख़याल-ए-बद से हमा-वक़्त इज्तिनाब करो

इबरत बहराईची

रात भर तन्हा रहा दिन भर अकेला मैं ही था

इब्राहीम अश्क

शौक़ जब भी बंदगी का रहनुमा होता नहीं

इब्न-ए-मुफ़्ती

एक दिन देखने को आ जाते

इब्न-ए-इंशा

ये सराए है

इब्न-ए-इंशा

इस बस्ती के इक कूचे में

इब्न-ए-इंशा

एक लड़का

इब्न-ए-इंशा

ऐ मतवालो! नाक़ों वालो!!

इब्न-ए-इंशा

उस शाम वो रुख़्सत का समाँ याद रहेगा

इब्न-ए-इंशा

सुनते हैं फिर छुप छुप उन के घर में आते जाते हो

इब्न-ए-इंशा

शाम-ए-ग़म की सहर नहीं होती

इब्न-ए-इंशा

राज़ कहाँ तक राज़ रहेगा मंज़र-ए-आम पे आएगा

इब्न-ए-इंशा

पीत करना तो हम से निभाना सजन हम ने पहले ही दिन था कहा ना सजन

इब्न-ए-इंशा

दिल हिज्र के दर्द से बोझल है अब आन मिलो तो बेहतर हो

इब्न-ए-इंशा

केक बिस्कुट खाएँगे उल्लू-के-पट्ठे रात दिन

हुसैन मीर काश्मीरी

क्या ख़बर थी इंक़लाब आसमाँ हो जाएगा

हुसैन मीर काश्मीरी

लोगों ने आकाश से ऊँचा जा कर तमग़े पाए

हुसैन माजिद

ज़मीं का दम निकलता जा रहा है

हुसैन आबिद

ज़मीं का दम निकलता जा रहा है

हुसैन आबिद

वो दिल समो ले जो दामन में काएनात का कर्ब

हुरमतुल इकराम

वो आलम है कि हर मौज-ए-नफ़स है रूह पर भारी

हुरमतुल इकराम

देखे हैं जो ग़म दिल से भुलाए नहीं जाते

होश तिर्मिज़ी

कहीं पे माल-ओ-दुनिया की ख़रीदार की बातें हैं

हिना हैदर

कब तक रहूँ मैं ख़ौफ़-ज़दा अपने आप से

हिमायत अली शाएर

इस शहर-ए-ख़ुफ़्तगाँ में कोई तो अज़ान दे

हिमायत अली शाएर

आँख की क़िस्मत है अब बहता समुंदर देखना

हिमायत अली शाएर

आज की शब जैसे भी हो मुमकिन जागते रहना

हिमायत अली शाएर

कहेगी हश्र के दिन उस की रहमत-ए-बे-हद

हिज्र नाज़िम अली ख़ान

वो शोख़ बाम पे जब बे-नक़ाब आएगा

हिज्र नाज़िम अली ख़ान

शब-ए-फ़िराक़ कुछ ऐसा ख़याल-ए-यार रहा

हिज्र नाज़िम अली ख़ान

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