दिन Poetry (page 108)

आलम-ए-ख़्वाब सही ख़्वाब में चलते रहिए

आबिद करहानी

श्याम गोकुल न जाना कि राधा का जी अब न बंसी की तानों पे लहराएगा

आबिद हशरी

वो इक निगाह जो ख़ामोश सी है बरसों से

आबिद आलमी

वो एक दिन जो तुझे सोचने में गुज़रा था

अभिषेक शुक्ला

फ़सील-ए-जिस्म गिरा दे मकान-ए-जाँ से निकल

अभिषेक शुक्ला

अब इख़्तियार में मौजें न ये रवानी है

अभिषेक शुक्ला

आँख थी सूजी हुई और रात भर सोया न था

अब्दुस्समद ’तपिश’

वो अजनबी तिरी बाँहों में जो रहा शब भर

अब्दुर्रहीम नश्तर

वो शख़्स जिस ने ख़ुद अपना लहू पिया होगा

अब्दुर्रहीम नश्तर

फिर इक नए सफ़र पे चला हूँ मकान से

अब्दुर्रहीम नश्तर

रूठे हैं हम से दोस्त हमारे कहाँ कहाँ

अब्दुल्लतीफ़ शौक़

का'बा है कभी तो कभी बुत-ख़ाना बना है

अब्दुल्लतीफ़ शौक़

आग सीनों में जला कर रखिए

अब्दुल सलाम

कहाँ थे शब इधर देखो हया क्यूँ है निगाहों में

अब्दुल रहमान रासिख़

करते नहीं जफ़ा भी वो तर्क-ए-वफ़ा के साथ

अब्दुल रहमान ख़ान वासिफ़ी बहराईची

जीत कर बाज़ी-ए-उल्फ़त को भी हारा जाए

अब्दुल रहमान ख़ान वासिफ़ी बहराईची

ज़ात उस की कोई अजब शय है

अब्दुल रहमान एहसान देहलवी

तुम्हारी चश्म ने मुझ सा न पाया

अब्दुल रहमान एहसान देहलवी

मरते दम नाम तिरा लब के जो आ जाए क़रीब

अब्दुल रहमान एहसान देहलवी

आँखों में मुरव्वत तिरी ऐ यार कहाँ है

अब्दुल रहमान एहसान देहलवी

ज़लज़ले सख़्त आते रहे रात-भर

अब्दुल मन्नान तरज़ी

बदलते मौसमों में आब-ओ-दाना भी नहीं होगा

अब्दुल मन्नान समदी

चराग़-ए-ज़िंदगी होगा फ़रोज़ाँ हम नहीं होंगे

अब्दुल मजीद सालिक

मुस्कुरा कर ख़िताब करते हो

अब्दुल हमीद अदम

जुम्बिश-ए-काकुल-ए-महबूब से दिन ढलता है

अब्दुल हमीद अदम

हसीन नग़्मा-सराओ! बहार के दिन हैं

अब्दुल हमीद अदम

ग़म-ए-मोहब्बत सता रहा है ग़म-ए-ज़माना मसल रहा है

अब्दुल हमीद अदम

अरे मय-गुसारो सवेरे सवेरे

अब्दुल हमीद अदम

उसे देख कर अपना महबूब प्यारा बहुत याद आया

अब्दुल हमीद

साए फैल गए खेतों पर कैसा मौसम होने लगा

अब्दुल हमीद

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