दिन Poetry (page 106)

हर फूल है हवाओं के रुख़ पर खिला हुआ

आफ़ताब हुसैन

अना को बाँधता रहता हूँ अपने शे'रों में

आफ़ताब हुसैन

कहूँ जो कर्ब फ़क़त कर्ब-ए-ज़ात समझोगे

आफ़ताब आरिफ़

ग़म-ए-हयात के पेश-ओ-अक़ब नहीं पढ़ता

अफ़सर माहपुरी

हरीम-ए-दिल से निकल आँख के सराब में आ

अफ़ीफ़ सिराज

आप ने आज ये महफ़िल जो सजाई हुई है

अफ़ीफ़ सिराज

हम्माम के आईने में शब डूब रही थी

आदिल मंसूरी

सातवीं पिसली में पीली चाँदनी

आदिल मंसूरी

रात और दिन के दरमियाँ कोई

आदिल मंसूरी

गोश्त की सड़कों पर

आदिल मंसूरी

वुसअत-ए-दामन-ए-सहरा देखूँ

आदिल मंसूरी

जलने लगे ख़ला में हवाओं के नक़्श-ए-पा

आदिल मंसूरी

होने को यूँ तो शहर में अपना मकान था

आदिल मंसूरी

गाँठी है उस ने दोस्ती इक पेश-इमाम से

आदिल मंसूरी

दरवाज़ा बंद देख के मेरे मकान का

आदिल मंसूरी

बिस्मिल के तड़पने की अदाओं में नशा था

आदिल मंसूरी

आशिक़ थे शहर में जो पुराने शराब के

आदिल मंसूरी

आने वाला है कोई मेहमान क्या

आदिल हयात

तेरे लिए चले थे हम तेरे लिए ठहर गए

अदीम हाशमी

मेरे रस्ते में भी अश्जार उगाया कीजे

अदीम हाशमी

ग़म के हर इक रंग से मुझ को शनासा कर गया

अदीम हाशमी

इक खिलौना टूट जाएगा नया मिल जाएगा

अदीम हाशमी

सहरा-ओ-दश्त-ओ-सर्व-ओ-समन का शरीक था

अदील ज़ैदी

वो लम्हा जो मेरा था

अदा जाफ़री

वो लम्हा कि ख़ामोशी-ए-शब नग़्मा-सरा थी

अदा जाफ़री

मुझे रंग-ए-ख़्वाब से ज़िंदगी का यक़ीं मिला

अदा जाफ़री

हिस नहीं तड़प नहीं बाब-ए-अता भी क्यूँ खुले

अदा जाफ़री

क़फ़स से छुटने पे शाद थे हम कि लज़्ज़त-ए-ज़िंदगी मिलेगी

अबुल मुजाहिद ज़ाहिद

हर एहतिमाम है दो दिन की ज़िंदगी के लिए

अबुल मुजाहिद ज़ाहिद

मेहनत से मिल गया जो सफ़ीने के बीच था

अबु तुराब

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