दिन Poetry (page 107)

जबीन-ए-शौक़ पर कोई हुआ है मेहरबाँ शायद

अबु मोहम्मद वासिल

ज़मीर-ए-नौ-ए-इंसानी के दिन हैं

अबु मोहम्मद सहर

फूलों की तलब में थोड़ा सा आज़ार नहीं तो कुछ भी नहीं

अबु मोहम्मद सहर

ये तिरी दुश्नाम के पीछे हँसी गुलज़ार सी

आबरू शाह मुबारक

तुम्हारी जब सीं आई हैं सजन दुखने को लाल अँखियाँ

आबरू शाह मुबारक

निपट ये माजरा यारो कड़ा है

आबरू शाह मुबारक

निगह तेरी का इक ज़ख़्मी न तन्हा दिल हमारा है

आबरू शाह मुबारक

कहें क्या तुम सूँ बे-दर्द लोगो किसी से जी का मरम न पाया

आबरू शाह मुबारक

गरचे इस बुनियाद-ए-हस्ती के अनासिर चार हैं

आबरू शाह मुबारक

दिल्ली के बीच हाए अकेले मरेंगे हम

आबरू शाह मुबारक

बढ़े है दिन-ब-दिन तुझ मुख की ताब आहिस्ता आहिस्ता

आबरू शाह मुबारक

आज यारों को मुबारक हो कि सुब्ह-ए-ईद है

आबरू शाह मुबारक

क्या क्या धरे अजूबे हैं शहर-ए-ख़याल में

अबरार हामिद

दिए की लौ से न जल जाए तीरगी शब की

अबरार हामिद

पस-मंज़र की आवाज़

अबरार अहमद

मौत दिल से लिपट गई उस शब

अबरार अहमद

दवाम-ए-वस्ल का ख़्वाब

अबरार अहमद

आख़िरी दिन से पहले

अबरार अहमद

आगे बढ़ने वाले

अबरार अहमद

ज़मीं नहीं ये मिरी आसमाँ नहीं मेरा

अबरार अहमद

ये रह-ए-इश्क़ है इस राह पे गर जाएगा तू

अबरार अहमद

ये भी तो कमाल हो गया है

अबरार अहमद

तुझ से वाबस्तगी रहेगी अभी

अबरार अहमद

हम ने रक्खा था जिसे अपनी कहानी में कहीं

अबरार अहमद

इक फ़रामोश कहानी में रहा

अबरार अहमद

बेकसी का हाल मय्यत से अयाँ हो जाएगा

अब्र अहसनी गनौरी

जब आसमान पर मह-ओ-अख़्तर पलट कर आए

आबिद मुनावरी

और किस का घर कुशादा है कहाँ ठहरेगी रात

आबिद मुनावरी

अभी से इस में शबाहत मिरी झलकने लगी

आबिद मलिक

आसूदगान-ए-हिज्र से मिलने की चाह में

आबिद मलिक

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