दिन Poetry (page 52)

ऐसे पुर-नूर-ओ-ज़िया यार के रुख़्सारे हैं

इमदाद अली बहर

अब मरना है अपने ख़ुशी है जीने से बे-ज़ारी है

इमदाद अली बहर

आज़ुर्दा हो गया वो ख़रीदार बे-सबब

इमदाद अली बहर

आबला ख़ार-ए-सर-ए-मिज़्गाँ ने फोड़ा साँप का

इमदाद अली बहर

ने आदमी पसंद न इस को ख़ुदा पसंद

इम्दाद आकाश

रात दिन नाक़ूस कहते हैं ब-आवाज़-ए-बुलंद

इमाम बख़्श नासिख़

ऐ अजल एक दिन आख़िर तुझे आना है वले

इमाम बख़्श नासिख़

कौन सा तन है कि मिस्ल-ए-रूह इस में तू नहीं

इमाम बख़्श नासिख़

है दिल-ए-सोज़ाँ में तूर उस की तजल्ली-गाह का

इमाम बख़्श नासिख़

उन के रुख़्सत का वो लम्हा मुझे यूँ लगता है

इमाम अाज़म

संकट के दिन थे तो साए भी मुझ से कतराते थे

इमाम अाज़म

टिमटिमाता हुआ मंदिर का दिया हो जैसे

इमाम अाज़म

मौसम सूखा सूखा सा था लेकिन ये क्या बात हुई

इमाम अाज़म

जाने वाले इतना बता दो फिर तुम कब तक आओगे

इमाम अाज़म

वक़्त वक़्त की बात है या दस्तूर है दुनिया का साईं

इलियास इश्क़ी

प्रीत-नगर की रीत नहीं है ऐसा ओछा-पन बाबा

इलियास इश्क़ी

पागल

इलियास बाबर आवान

मस्जिद-ए-अहमरीं

इलियास बाबर आवान

हमारे दिन गुज़र गए

इलियास बाबर आवान

ये जो तरतीब से बना हुआ मैं

इलियास बाबर आवान

बाग़ इक दिन का है सो रात नहीं आने की

इलियास बाबर आवान

ज़हर में बुझे सारे तीर हैं कमानों पर

इकराम मुजीब

क्या जाने किस की धुन में रहा दिल-फ़िगार चाँद

इकराम जनजुआ

इंकार ही कर दीजिए इक़रार नहीं तो

इफ़्तिख़ार राग़िब

सारे दरिया फूट पड़ेंगे इक दूजे के बीच

इफ़्तिख़ार क़ैसर

मिरी आँखों को आँखों का किनारा कौन देगा

इफ़्तिख़ार क़ैसर

दूर दूर तक सन्नाटा है कोई नहीं है पास

इफ़्तिख़ार क़ैसर

है जुस्तुजू अगर इस को इधर भी आएगा

इफ़्तिख़ार नसीम

वो ख़्वाब था बिखर गया ख़याल था मिला नहीं

इफ़्तिख़ार इमाम सिद्दीक़ी

मलबे से जो मिली हैं वो लाशें दिखाइए

इफ़्तिख़ार फलक काज़मी

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