दिन Poetry (page 51)

आख़िर इक दिन सब को मरना होता है

इमरान आमी

कैसा आना कैसा जाना मेरे घर क्या आओगे

इम्दाद इमाम असर

यूँही उलझी रहने दो क्यूँ आफ़त सर पर लाते हो

इम्दाद इमाम असर

झूटे वादों पर तुम्हारी जाएँ क्या

इम्दाद इमाम असर

किसी के वास्ते क्या क्या हमें दुख झेलने होंगे

इम्दाद हमदानी

ये दिल है तो आफ़त में पड़ते रहेंगे

इमदाद अली बहर

वफ़ा में बराबर जिसे तोल लेंगे

इमदाद अली बहर

वफ़ा में बराबर जिसे तोल लेंगे

इमदाद अली बहर

सीना-कूबी कर चुके ग़म कर चुके

इमदाद अली बहर

सीना-कूबी कर चुके ग़म कर चुके

इमदाद अली बहर

सर्व में रंग है कुछ कुछ तिरी ज़ेबाई का

इमदाद अली बहर

रौशन हज़ार चंद हैं शम्स-ओ-क़मर से आप

इमदाद अली बहर

क़द्र-दाँ कोई न असफ़ल है न आ'ला अपना

इमदाद अली बहर

मेरे आगे तज़्किरा माशूक़-ओ-आशिक़ का बुरा

इमदाद अली बहर

मैं गिला तुम से करूँ ऐ यार किस किस बात का

इमदाद अली बहर

ख़ुर्शीद-रुख़ों का सामना है

इमदाद अली बहर

ख़ुर्शीद फ़िराक़ में तपाँ है

इमदाद अली बहर

ख़ूब-रूयान-ए-जहाँ चाँद की तनवीरें हैं

इमदाद अली बहर

जब कि सर पर वबाल आता है

इमदाद अली बहर

जब दस्त-बस्ता की नहीं उक़्दा-कुशा नमाज़

इमदाद अली बहर

इस तरह ज़ीस्त बसर की कोई पुरसाँ न हुआ

इमदाद अली बहर

इफ़्शा हुए असरार-ए-जुनूँ जामा-दरी से

इमदाद अली बहर

हर तरफ़ मज्मा-ए-आशिक़ाँ है

इमदाद अली बहर

गया सब अंदोह अपने दिल का थमे अब आँसू क़रार आया

इमदाद अली बहर

फ़ुर्क़त की आफ़त बुरे दिन काटना साल है

इमदाद अली बहर

दम-ए-मर्ग बालीं पर आया तो होता

इमदाद अली बहर

चूर सदमों से हो बईद नहीं

इमदाद अली बहर

चुनने न दिया एक मुझे लाख झड़े फूल

इमदाद अली बहर

चार दिन है ये जवानी न बहुत जोश में आ

इमदाद अली बहर

बशर रोज़-ए-अज़ल से शेफ़्ता है शान-ओ-शौकत का

इमदाद अली बहर

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