दिन Poetry (page 49)

पहचान कम हुई न शनासाई कम हुई

राही कुरैशी

लहू आँखों में रौशन है ये मंज़र देखना अब के

राही कुरैशी

उम्मीद

राही मासूम रज़ा

ख़्वाब

राही मासूम रज़ा

मौज-ए-हवा की ज़ंजीरें पहनेंगे धूम मचाएँगे

राही मासूम रज़ा

हम तो हैं परदेस में देस में निकला होगा चाँद

राही मासूम रज़ा

कहाँ न-जाने चला गया इंतिज़ार कर के

इरफ़ान सत्तार

इधर कुछ दिन से दिल की बेकली कम हो गई है

इरफ़ान सत्तार

अब आ भी जाओ, बहुत दिन हुए मिले हुए भी

इरफ़ान सत्तार

नक़ाब चेहरे से उस के कभी सरकता था

इरफ़ान अहमद

मैं कई बरसों से तेरी जुस्तुजू करती रही

इरम ज़ेहरा

कितनी दूर से चलते चलते ख़्वाब-नगर तक आई हूँ

इरम ज़ेहरा

कैसे बनाऊँ हाथ पर तस्वीर ख़्वाब की

इरम ज़ेहरा

हम बाग़-ए-तमन्ना में दिन अपने गुज़ार आए

इरम लखनवी

अंधराता

इक़तिदार जावेद

तमाम दिन मुझे सूरज के साथ चलना था

इक़बाल उमर

हर बात जो न होना थी ऐसी हुई कि बस

इक़बाल उमर

एक इक लम्हा कि एक एक सदी हो जैसे

इक़बाल उमर

छतों पे आग रही बाम-ओ-दर पे धूप रही

इक़बाल उमर

उस ने भी कई रोज़ से ख़्वाहिश नहीं ओढ़ी

इक़बाल साजिद

मैं आईना बनूँगा तू पत्थर उठाएगा

इक़बाल साजिद

उस आइने में देखना हैरत भी आएगी

इक़बाल साजिद

ख़ुदा ने जिस को चाहा उस ने बच्चे की तरह ज़िद की

इक़बाल साजिद

ख़ौफ़ दिल में न तिरे दर के गदा ने रक्खा

इक़बाल साजिद

इस साल शराफ़त का लिबादा नहीं पहना

इक़बाल साजिद

गड़े मर्दों ने अक्सर ज़िंदा लोगों की क़यादत की

इक़बाल साजिद

दुनिया ने ज़र के वास्ते क्या कुछ नहीं किया

इक़बाल साजिद

दहर के अंधे कुएँ में कस के आवाज़ा लगा

इक़बाल साजिद

गर्दिशों में भी हम रास्ता पा गए

इक़बाल सफ़ी पूरी

उस को नग़्मों में समेटूँ तो बुका जाने है

इक़बाल मतीन

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