दिन Poetry (page 48)

आ जाना

राजेन्द्र नाथ रहबर

क्या आज उन से अपनी मुलाक़ात हो गई

राजेन्द्र नाथ रहबर

आइना सामने रखोगे तो याद आऊँगा

राजेन्द्र नाथ रहबर

ख़्वाब आँखों को हमारी जो दिखाए आइना

राजेन्द्र कलकल

तर्क जिस दिन से किया हम ने शकेबाई का

रजब अली बेग सुरूर

मरीज़-ए-हिज्र को सेहत से अब तो काम नहीं

रजब अली बेग सुरूर

ख़ुद-कुशी

राजा मेहदी अली ख़ाँ

जमाल-ज़ादा

राजा मेहदी अली ख़ाँ

हमें हमारी बीवियों से बचाओ

राजा मेहदी अली ख़ाँ

शायद गुलाब शायद कबूतर

रईस फ़रोग़

सग-ए-हम-सफ़र और मैं

रईस फ़रोग़

नतशे ने कहा

रईस फ़रोग़

शहर का शहर बसा है मुझ में

रईस फ़रोग़

सड़कों पे घूमने को निकलते हैं शाम से

रईस फ़रोग़

रातों को दिन के सपने देखूँ दिन को बिताऊँ सोने में

रईस फ़रोग़

कितनी ही बारिशें हों शिकायत ज़रा नहीं

रईस फ़रोग़

कितनी ही बारिशें हों शिकायत ज़रा नहीं

रईस फ़रोग़

हाथ हमारे सब से ऊँचे हाथों ही से गिला भी है

रईस फ़रोग़

इक अपने सिलसिले में तो अहल-ए-यक़ीं हूँ मैं

रईस फ़रोग़

देर तक मैं तुझे देखता भी रहा

रईस फ़रोग़

आँखें जिन को देख न पाएँ सपनों में बिखरा देना

रईस फ़रोग़

ख़ामोश ज़िंदगी जो बसर कर रहे हैं हम

रईस अमरोहवी

कल रात कई ख़्वाब-ए-परेशाँ नज़र आए

रईस अमरोहवी

जहाँ माबूद ठहराया गया हूँ

रईस अमरोहवी

अब के बिखरा तो मैं यकजा नहीं हो पाऊँगा

राहुल झा

बहुत रौशन हम अपना नय्यर-ए-तक़दीर देखेंगे

रहमत इलाही बर्क़ आज़मी

न शिकवे हैं न फ़रियादें न आहें हैं न नाले हैं

राही शहाबी

मय मिले या न मिले रस्म निभा ली जाए

राही शहाबी

मय मिले या न मिले रस्म निभा ली जाए

राही शहाबी

अश्क आँखों में और दिल में आहों के शरर देखे

राही शहाबी

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