रात दिन नाक़ूस कहते हैं ब-आवाज़-ए-बुलंद
दैर से बेहतर है काबा गर बुतों में तू नहीं
Mohsin Naqvi
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Mir Taqi Mir
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Habib Jalib
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रिफ़अत कभी किसी की गवारा यहाँ नहीं
हम मय-कशों को डर नहीं मरने का मोहतसिब
हम ज़ईफ़ों को कहाँ आमद ओ शुद की ताक़त
सौ क़िस्सों से बेहतर है कहानी मिरे दिल की
जान हम तुझ पे दिया करते हैं
हो गया ज़र्द पड़ी जिस पे हसीनों की नज़र
वो बेज़ार मुझ से हुआ ज़ार मैं हूँ
आती जाती है जा-ब-जा बदली
जुस्तुजू करनी हर इक अम्र में नादानी है
मिरा सीना है मशरिक़ आफ़्ताब-ए-दाग़-ए-हिज्राँ का
कौन सा तन है कि मिस्ल-ए-रूह इस में तू नहीं
क्या रोज़-ए-बद में साथ रहे कोई हम-नशीं