हम ज़ईफ़ों को कहाँ आमद ओ शुद की ताक़त
आँख की बंद हुआ कूचा-ए-जानाँ पैदा
Wasi Shah
Mir Taqi Mir
Rahat Indori
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Allama Iqbal
Gulzar
Anwar Masood
Mohsin Naqvi
Faiz Ahmad Faiz
Ahmad Faraz
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रिफ़अत कभी किसी की गवारा यहाँ नहीं
दरिया-ए-हुस्न और भी दो हाथ बढ़ गया
तू ने महजूर कर दिया हम को
हो गए दफ़्न हज़ारों ही गुल-अंदाज़ इस में
तकल्लुम ही फ़क़त है उस सनम का
आने में सदा देर लगाते ही रहे तुम
सौ क़िस्सों से बेहतर है कहानी मिरे दिल की
रश्क से नाम नहीं लेते कि सुन ले न कोई
सियह-बख़्ती में कब कोई किसी का साथ देता है
जान हम तुझ पे दिया करते हैं
क्या रोज़-ए-बद में साथ रहे कोई हम-नशीं
तेरी सूरत से किसी की नहीं मिलती सूरत