आने में सदा देर लगाते ही रहे तुम
जाते रहे हम जान से आते ही रहे तुम
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वो बेज़ार मुझ से हुआ ज़ार मैं हूँ
रिफ़अत कभी किसी की गवारा यहाँ नहीं
चैन दुनिया में ज़मीं से ता-फ़लक दम भर नहीं
हो गया ज़र्द पड़ी जिस पे हसीनों की नज़र
है दिल-ए-सोज़ाँ में तूर उस की तजल्ली-गाह का
आ गया जब से नज़र वो शोख़ हरजाई मुझे
सब हमारे लिए ज़ंजीर लिए फिरते हैं
दिल सियह है बाल हैं सब अपने पीरी में सफ़ेद
हम मय-कशों को डर नहीं मरने का मोहतसिब
ऐ अजल एक दिन आख़िर तुझे आना है वले
शुबह 'नासिख़' नहीं कुछ 'मीर' की उस्तादी में
ताज़गी है सुख़न-ए-कुहना में ये बाद-ए-वफ़ात