शुबह 'नासिख़' नहीं कुछ 'मीर' की उस्तादी में
आप बे-बहरा है जो मो'तक़िद-ए-'मीर' नहीं
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सियह-बख़्ती में कब कोई किसी का साथ देता है
चैन दुनिया में ज़मीं से ता-फ़लक दम भर नहीं
तेरी सूरत से किसी की नहीं मिलती सूरत
फ़ुर्क़त क़ुबूल रश्क के सदमे नहीं क़ुबूल
दिल में पोशीदा तप-ए-इश्क़-ए-बुताँ रखते हैं
हो गया ज़र्द पड़ी जिस पे हसीनों की नज़र
सौ क़िस्सों से बेहतर है कहानी मिरे दिल की
ऐ अजल एक दिन आख़िर तुझे आना है वले
दरिया-ए-हुस्न और भी दो हाथ बढ़ गया
यारों की हम से दिल-शिकनी हो सके कहाँ
कौन सा तन है कि मिस्ल-ए-रूह इस में तू नहीं