हो गए दफ़्न हज़ारों ही गुल-अंदाज़ इस में
इस लिए ख़ाक से होते हैं गुलिस्ताँ पैदा
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सियह-बख़्ती में कब कोई किसी का साथ देता है
मिरा सीना है मशरिक़ आफ़्ताब-ए-दाग़-ए-हिज्राँ का
रिफ़अत कभी किसी की गवारा यहाँ नहीं
जान हम तुझ पे दिया करते हैं
ऐन दानाई है 'नासिख़' इश्क़ में दीवानगी
दिल में पोशीदा तप-ए-इश्क़-ए-बुताँ रखते हैं
गो तू मिलता नहीं पर दिल के तक़ाज़े से हम
तेरी सूरत से किसी की नहीं मिलती सूरत
तकल्लुम ही फ़क़त है उस सनम का
तीन त्रिबेनी हैं दो आँखें मिरी
सनम कूचा तिरा है और मैं हूँ