तीन त्रिबेनी हैं दो आँखें मिरी
अब इलाहाबाद भी पंजाब है
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ऐन दानाई है 'नासिख़' इश्क़ में दीवानगी
सब हमारे लिए ज़ंजीर लिए फिरते हैं
तू ने महजूर कर दिया हम को
दिल में पोशीदा तप-ए-इश्क़-ए-बुताँ रखते हैं
ऐ अजल एक दिन आख़िर तुझे आना है वले
हम मय-कशों को डर नहीं मरने का मोहतसिब
गो तू मिलता नहीं पर दिल के तक़ाज़े से हम
ख़्वाब ही में नज़र आ जाए शब-ए-हिज्र कहीं
मिरा सीना है मशरिक़ आफ़्ताब-ए-दाग़-ए-हिज्राँ का
गया वो छोड़ कर रस्ते में मुझ को
रात दिन नाक़ूस कहते हैं ब-आवाज़-ए-बुलंद
जुस्तुजू करनी हर इक अम्र में नादानी है