ख़्वाब ही में नज़र आ जाए शब-ए-हिज्र कहीं
सो मुझे हसरत-ए-दीदार ने सोने न दिया
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गया वो छोड़ कर रस्ते में मुझ को
सनम कूचा तिरा है और मैं हूँ
क्या रोज़-ए-बद में साथ रहे कोई हम-नशीं
दिल सियह है बाल हैं सब अपने पीरी में सफ़ेद
करे जो हर क़दम पर एक नाला
तमाम उम्र यूँ ही हो गई बसर अपनी
जुस्तुजू करनी हर इक अम्र में नादानी है
हम मय-कशों को डर नहीं मरने का मोहतसिब
है दिल-ए-सोज़ाँ में तूर उस की तजल्ली-गाह का
सियह-बख़्ती में कब कोई किसी का साथ देता है
सौ क़िस्सों से बेहतर है कहानी मिरे दिल की
दरिया-ए-हुस्न और भी दो हाथ बढ़ गया