दिया Poetry (page 44)

न जाने कब वो पलट आएँ दर खुला रखना

इफ़्तिख़ार नसीम

अपनी मजबूरी बताता रहा रो कर मुझ को

इफ़्तिख़ार नसीम

अपना सारा बोझ ज़मीं पर फेंक दिया

इफ़्तिख़ार नसीम

सवाद-ए-हिज्र में रक्खा हुआ दिया हूँ मैं

इफ़्तिख़ार मुग़ल

सवाद-ए-हिज्र में रक्खा हुआ दिया हूँ मैं

इफ़्तिख़ार मुग़ल

कभी कभी तो ये हालत भी की मोहब्बत ने

इफ़्तिख़ार मुग़ल

जमाल-गाह-ए-तग़ज़्ज़ुल की ताब-ओ-तब तिरी याद

इफ़्तिख़ार मुग़ल

इक ख़ला, एक ला-इंतिहा और मैं

इफ़्तिख़ार मुग़ल

बिखर ही जाऊँगा मैं भी हवा उदासी है

इफ़्तिख़ार इमाम सिद्दीक़ी

अंदलीबों से कभी गुल से कभी लेता हूँ

इफ़्तिख़ार हुसैन रिज़वी सईद

दिल कभी ख़्वाब के पीछे कभी दुनिया की तरफ़

इफ़्तिख़ार आरिफ़

यक़ीन से यादों के बारे में कुछ कहा नहीं जा सकता

इफ़्तिख़ार आरिफ़

एक था राजा छोटा सा

इफ़्तिख़ार आरिफ़

बैलन्स-शीट

इफ़्तिख़ार आरिफ़

सर-ए-बाम-ए-हिज्र दिया बुझा तो ख़बर हुई

इफ़्तिख़ार आरिफ़

दोस्त क्या ख़ुद को भी पुर्सिश की इजाज़त नहीं दी

इफ़्तिख़ार आरिफ़

अजीब कर्ब-ए-मुसलसल दिल-ओ-नज़र में रहा

इफ़्फ़त ज़र्रीं

एक मुद्दत से सर-ए-दोश-ए-हवा हूँ मैं भी

इफ़्फ़त अब्बास

इक दिया दिल की रौशनी का सफ़ीर

इदरीस बाबर

यूँही आती नहीं हवा मुझ में

इदरीस बाबर

ख़ेमगी-ए-शब है तिश्नगी दिन है

इदरीस बाबर

अपने एहसानों का नीला साएबाँ रहने दिया

इबरत मछलीशहरी

उन्स तो होता है दीवाने से दीवाने को

इबरत बहराईची

सुकूँ-परवर है जज़्बाती नहीं है

इबरत बहराईची

ख़याल-ए-बद से हमा-वक़्त इज्तिनाब करो

इबरत बहराईची

न कू-ए-यार में ठहरा न अंजुमन में रहा

इब्राहीम अश्क

करें सलाम उसे तो कोई जवाब न दे

इब्राहीम अश्क

नफ़रतें न अदावतें बाक़ी हैं

इब्न-ए-मुफ़्ती

फिर शाम हुई

इब्न-ए-इंशा

झुलसी सी इक बस्ती में

इब्न-ए-इंशा

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