दिया Poetry (page 42)

काम आ गई है गर्दिश-ए-दौराँ कभी कभी

इक़बाल आबिदी

घड़ी में अक्स-ए-इंसाँ

इंतिख़ाब अालम

चाँद

इंतिख़ाब अालम

यास-ओ-उमीद-ओ-शादी-ओ-ग़म ने धूम उठाई सीने में

इंशा अल्लाह ख़ान

वो जो शख़्स अपने ही ताड़ में सो छुपा है दिल ही की आड़ में

इंशा अल्लाह ख़ान

शब ख़्वाब में देखा था मजनूँ को कहीं अपने

इंशा अल्लाह ख़ान

मुझे छेड़ने को साक़ी ने दिया जो जाम उल्टा

इंशा अल्लाह ख़ान

जिस को कुछ धन हो करे हम से हक़ीक़त की बहस

इंशा अल्लाह ख़ान

अमरद हुए हैं तेरे ख़रीदार चार पाँच

इंशा अल्लाह ख़ान

उस के नाम जिसे तारीकी निगल चुकी

इंजिला हमेश

शाख़-ए-अदम

इंजिला हमेश

ख़ुदा से कलाम

इंजिला हमेश

जिला

इंजिला हमेश

सिला दिया है मोहब्बत का तुम ने ये कैसा

इन्दिरा वर्मा

हज़ार ख़्वाब लिए जी रही हैं सब आँखें

इन्दिरा वर्मा

रहती है सब के पास तन्हाई

इंद्र सराज़ी

ख़ुद अपने उजाले से ओझल रहा है दिया जल रहा है

इनाम नदीम

वो आते-जाते इधर देखता ज़रा सा है

इनाम कबीर

तिरी फ़ुज़ूल बंदगी बना न दे ख़ुदा मुझे

इम्तियाज़ अहमद

तेरी याद

इमरान शनावर

ख़बर का रुख़

इमरान शमशाद

तुझ को खो देने का एहसास हुआ तेरे बा'द

इमरान साग़र

मैं अपनी हैसियत से कुछ ज़ियादा ले के आया हूँ

इमरान साग़र

कब कहा मैं ने मुझे सारा ज़माना चाहिए

इमरान साग़र

तुझ को देखा तो ये लगा है मुझे

इमरान हुसैन आज़ाद

दीवानगी में अपना पता पूछता हूँ मैं

इमरान हुसैन आज़ाद

तुझ से इक हाथ क्या मिला लिया है

इमरान आमी

कुछ एहतिमाम न था शाम-ए-ग़म मनाने को

इमरान आमी

कोई मेरा इमाम था ही नहीं

इमरान आमी

जितने पानी में कोई डूब के मर सकता है

इमरान आमी

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